अहिंसा एवं प्रेम के पुजारी महात्मा गाँधी: Bharat Mata

अहिंसा एवं प्रेम के पुजारी महात्मा गाँधी | Gandhi Jayanti I 2 October I Mahatma Gandhi I Bharat Mata

सुकरात को पेश की सा को सूली और गांधी को गोली यह विडंबना ही है कि सत्य अहिंसा एवं प्रेम के पुजारियों को असत्य के षड्यंत्र हिंसा की पराकाष्ठा और घृणा के दंश को सहना पड़ा। कोई भी देश काल हो, कैसा भी समाज हो, कैसी भी परिस्थितियां हूं। मानवता जहां एक और समाज में व्याप्त कुरीतियों को सहती रही। वहीं दूसरी ओर समाज को इन कुरीतियों से मुक्त कराने के लिए होने वाले प्रयासों की साक्षी बनी। यदि आज मानवता में प्रेम और सद्भावना विद्यमान है तो यह इन्हीं प्रयासों का समन्वित स्वरूप है। इन्हीं प्रयासों में एक महान प्रयास का नाम है। महात्मा गांधी सत्य ही ईश्वर है।

महात्मा गाँधी: Mahatma Gandhi Biography in Hindi

गांधी जी द्वारा कहे गए शब्द उनके जीवन सिद्धांत को पूर्ण रूप से परिभाषित करते हैं। सत्य को ईश्वर मानकर सारा जीवन मानवता को समर्पित करने वाले और अहिंसा के दुर्गम पथ पर चलने वाले हमारे राष्ट्रपिता। महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति थे जिन्होंने देश को स्वतंत्रता का स्वप्न न केवल दिखलाया अपितु उसे प्राप्त करने का साहस भी प्रदान किया। आज भी गांधी जी का सरल व्यक्तित्व और अधिक विचारधारा उनकी स्मृति के रूप में विश्व शांति का मंत्र है।

आज हम बापू के बचपन के झरोखे से उनके मोहनदास से महात्मा बनने की एक छोटी सी झलक देखेंगे कि घटना उस समय की है जब गांधीजी अल्फ्रेड हाई स्कूल में अपनी आरंभिक शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। एक दिन विद्यालय निरीक्षक उनके विद्यालय में निरीक्षण के लिए आए हुए थे। उनके शिक्षक ने छात्रों को निर्देश दे रखा था कि निरीक्षक पर सभी छात्रों का अच्छा प्रभाव पड़ना चाहिए। जब निरीक्षण के लिए निरीक्षक गांधी जी की कक्षा में आए तो उन्होंने परीक्षा लेने के लिए छात्रों को पांच शब्द बताकर उनकी वर्तनी लिखने को कहा। निरीक्षक की बात सुनकर सारे छात्र वर्तनी लिखने में लगता है। सभी छात्र वर्तनी लिखी रहे शिक्षक ने देखा कि गांधी जी ने एक शब्द की वर्तनी गलत लिखी है। उन्होंने गांधीजी को संकेत कर बगल वाले छात्र से निकलकर वर्तनी ठीक लिखने को कहा, किंतु गांधी जी ने ऐसा नहीं किया। उन्हें नकल करना अपराध लगा निरीक्षक के जाने के पश्चात उन्हें शिक्षक से डांट खानी पड़ी। किंतु उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। इतनी कम आयु में इतना अधिक संकल्प गांधीजी के अदम्य आत्म बल का परिचायक था। कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। यदि इस कहावत को सत्यापित करना हो तो गांधीजी के प्रेरणादाई जीवन की एक और घटना का उल्लेख किया जा सकता है।

गांधी जी का नाम मोहनदास था और उनकी मां पुतलीबाई उन्हें प्यार से मोनिया कहकर पुकारती थी। मोहन अपनी मां से बहुत प्यार करते थे और उनकी हर बात ध्यान से सुनते थे। उनके घर में कुआं था। कुएं के चारों ओर पेड़ पौधे लगे थे। बच्चों को कुएं के कारण पेड़ों पर चढ़ने की मनाही थी, लेकिन मोहन फिर भी पेड़ पर चढ़ जाते थे। एक दिन मोहन के बड़े भाई ने मोहन को कुएं के पास वाले पेड़ पर चढ़ा हुआ देख लिया। उन्होंने मोहन को पेड़ों से उतरने को कहा।मनमोहन नहीं उतरे भाई ने आवेश में मोहन को चांटा मार दिया। मोहन रोते-रोते मां के पास गए और कहा मां बड़े भैया ने मुझे चांटा मारा। आप भैया को डांट लगाओ। मां काम में व्यस्त थी। मोहन से बार-बार भैया के मारने की बात कहते रहे। मां ने परेशान होकर कहा, उसने तुझे मारा है ना जा तू भी उसे मार दे। मुझे भी तंग मत कर मुनिया आंसू पूछते हुए मोहन ने कहा कि तुम क्या कह रही हो, तुम तो हमेशा कहती हो कि बड़ों का आदर करना चाहिए तो मैं भैया पर हाथ कैसे उठा सकता हूं। हां तुम भैया से बड़ी हो इसलिए तुम भैया को समझा सकती हो कि वह मुझे ना मारे मोहन की बात सुनकर मां को अपनी भूल का अहसास हो गया। काम छोड़कर उन्होंने अपने बेटे मोहन को गले से लगा लिया। उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे। वह बोली तू मेरा राजा बेटा है मोनिया आज तूने मुझे मेरी भूल बता दी हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलना मेरे लाल मां द्वारा सिखाया गया। यह पाठ उस बालक मोहन ने अपने जीवन का मंत्र बना लिया।

मोहनदास जीवन पर्यंत सच्चाई और ईमानदारी की राह पर। और अपने कर्तव्य मार्ग से कभी भी तनिक भी देख भ्रमित नहीं हुए। मोहनदास थे। महात्मा तक की यात्रा में उन्होंने संपूर्ण विश्व को मानवता सत्य एवं अहिंसा का पाठ सिखा दिया। भारत समन्वय परिवार और भारत माता चैनल की ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सादर नमन।

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