शहीद भगत सिंह | Shaheed Bhagat Singh | Bharat Mata
भारतभूमि सदैव से ही वीर बलिदानी पुरुषों के लिए गौरवान्वित रही है पराधीनता के काल में भी ईश्वरीय शक्ति ने ऐसी महान विभूतियों को इस धराधाम पर भेजा है जिन्होंने हंसते-हंसते फांसी का फंदा अपने गले में पहनना और वंदे मातरम का महामंत्र भावी पीढ़ी को दे दिया
भारत में पंजाब की धरती सदैव से ही वीर प्रसूता रही है इसी प्रांत के लायलपुर जो अब पाकिस्तान में है जिले के बंगरा नामक ग्राम में एक क्षत्रिय सिख परिवार में अश्वनी 13 संवत 1964 तदनुसार सितंबर 1920 साथ में यह वीर बालक पैदा हुआ था पिता सरदार किशन सिंह जी देशप्रेम के अपराध में जेल में बंद थे बालक के चाचा अजीत सिंह को देश भक्ति के कारण निर्वासित कर दिया गया था बालक के जन्म के समय सरदार किशन सिंह जी को कि कुछ दिनों के लिए जेल से छोड़ दिया गया बालक को भांग वाला बड़ा भाग्यशाली कहने के साथ-साथ उसका नाम भगत सिंह रखा गया भगत सिंह की मां और दादी बड़ी ही धार्मिक थी उनसे सुनकर भगत सिंह ने तीन वर्ष की आयु में ही गायत्री मंत्र याद कर लिया था बचपन में ही साथियों के साथ युद्ध का अभ्यास किया करते थे 5 वर्ष की आयु में ही उसे ग्राम कि प्राइमरी पाठशाला में पढ़ने भेज दिया गया पिता के साथ एक बार जब लाहौर गया तो आनंद किशोर जी के पूछने पर बालक ने तपाक से उत्तर दिया बंदूक पहुंचता हूं यह सुनकर वह अवाक रह गए चौथी कक्षा उत्तीर्ण कर उस बच्चे ने लाहौर के खालसा स्कूल में प्रवेश लिया.
1921 में देश में चल रहे असहयोग आंदोलन के समय सरदार किशन सिंह ने भगत सिंह को डीएवी स्कूल से हटाकर नेशनल कॉलेज में पढ़ने भेजा इस कॉलेज के संचालक पंजाब केसरी लाला लाजपत राय थे वह भगत सिंह को सुखदेव जैसे देशभक्तों का साथ मिला शादी के लिए माता-पिता के नाम पत्र लिख दिया मैं विवाह नहीं करना चाहता इसी कारण कॉलेज छोड़कर जा रहा हूं और कोई बात नहीं आप चिंता ना करें मेहता के अस्वस्थ होने का तार मिलते ही तो जन्मभूमि पर आए और माता की सेवा में दिन-रात एक कर दिया पंजाब में गुरु का बाग नाम से सत्याग्रह की धूम मची हुई थी,
भगत सिंह ने शहीदी जत्थे का बंगा में शानदार स्वागत किया नवंबर 1924 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की इस सभा में भगत सिंह ने घोषणा की कि एक होकर विदेशी शासन की जड़ों को बुखार है को राम कृष्ण के नाम लेवा ओं गुरु गोविंद सिंह के लाडलों उठो जागो घोषणा सुनते ही हम तैयार है हम कोट करेंगे मात्रभूमि अमर रहे के नारों से आकाश गूंज उठा लोगों ने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किए इसके बाद तो भगत सिंह अंग्रेजों की आंख की किरकिरी बन गए कुछ दिनों तक उन्होंने अमृतसर में अकाली पत्र का संपादन किया जुलाई सन् 1998 इसमें झांसी में हुई क्रांतिकारियों की बैठक में चंद्रशेखर आजाद को नेता चुना गया तीस अक्टूबर को साइमन कमीशन लौट जाओ के नारे के साथ विरोध शुरू किया गया जिसमें लाला लाजपतराय बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों बाद मृत्यु को प्राप्त हुए,
भगत सिंह ने इस घटना का बदला लेने की ठानी और सत्रह दिसंबर को अंग्रेज सांडर्स को मोटरसाइकिल पर गोलियों से भून डाला भगत सिंह का साथ और राजगुरु तीनों डीएवी कॉलेज में जा छिपे तीनों ही वेश बदलकर लाहौर से निकल भागे 12 जून सन 1929 को उन्हें कालापानी कर दो जिला भगत सिंह को मियांवाली जेल भेज दिया गया जेल के जीवन से ऊब कर भगतसिंह ने जेलर को पत्र लिखा कि हमने मातृभूमि से प्रेम करने का अपराध किया है हमें छोड़ दिया जाए यह सेना बुलाकर गोली से उड़ा दिया जाए हमें किसी भी कानून के अनुसार जेल में सड़ने का आपको कोई अधिकार नहीं है ऐसा करके आप हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं
भगत सिंह ने 115 दिन तक हस्ते हस्ते भूख हड़ताल की तरफ सरकार चुकी और चीजों में सुधार हुए 7अक्टूबर 1930 को सरदार भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी का दंड दिया गया इरविन गांधी समझौता के अंतर्गत असहयोग बंद हुआ सभी बंधी छोड़े जा चुके थे परंतु तीनों युवकों की रिहाई के लिए गांधी जी ने कोई प्रयास नहीं किया हाईकोर्ट में अपील अस्वीकार हो गई प्रिवी काउंसिल में भी सुनवाई नहीं हुई 24 मार्च 1931 का दिन फांसी के लिए तय हुआ था जेल के नियमों अनुसार फांसी प्रातः काल होती है परंतु सरकार इतनी भयभीत हो गई कि इन्हें 23 मार्च को साईं काल ही फांसी पर चढ़ा दिया गया फांसी पर चढ़ने से पूर्व तीनों युवकों ने स्वतंत्रता गान गाया और हंसते-हंसते फांसी का फंदा गले में डाल दिया तीनों सपूतों के शवों को फिरोजपुर के पास सतत जल के तट पर अग्नि को भेंट कर दिया गया सरदार भगत सिंह सदृश्य भारत मां के सच्चे सपूतों के प्रति मस्तक श्रद्धा से अपने आप झुक जाता है ऐसे वीरों का चरित्र हमें सदैव स्वाधीनता के गौरव को बनाए रखने की प्रेरणा देता रहे।
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