Lal Bahadur Shastri | खादी का कुर्ता और बनारसी साड़ी

भूत काल के गर्भ से जन्म.. वर्तमान के गर्भ से जीवन और भविष्य के गर्भ से मृत्यु की उत्पत्ति अटल है। ये प्रकृति का शाश्वत सत्य है किन्तु धन्य है वो जीवन जो अपना सर्वस्व अपनी मातृभूमि एवं अपने कर्तव्यों पर समर्पित कर देते हैं और यही जीवन कालचक्र से पृथक होकर संसार में सदैव के लिए अमरता को प्राप्त कर लेते हैं।     

ऐसा ही एक अमूल्य जीवन जो जन्म से लेकर मृत्यु तक केवल देश प्रेम.. कर्तव्यनिष्ठा एवं सहृदयता का पर्याय बना रहा.. उसका नाम है लाल बहादुर शास्त्री।   

भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री यद्यपि दिखने में साधारण थे.. किन्तु पर्वत के समान दृढ़ता एवं सिंह के समान निर्भीकता के स्वामी थे। शास्त्री जी का देश-प्रेम एवं उनकी कर्तव्यपरायणता उनके द्वारा दिए गए वक्तव्यों और कार्यों में सदैव परिलक्षित होती रही। उन्होंने भारतवासियों को संबोधित करते हुए कहा था - "देश के प्रति निष्‍ठा सभी निष्‍ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्‍ठा है क्‍योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्‍या मिलता है।"

'जय जवान - जय किसान' के ओजस्वी नारे से सम्पूर्ण भारत का मनोबल जाग्रत करने वाले.. देश के लाल श्री लाल बहादुर शास्त्री जी सौम्यता एवं निर्भीकता का अद्भुत समन्वय थे।   'सादा जीवन उच्च विचार' के साक्षात उदाहरण.. पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी के पिता श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे और इस कारण से सब उन्हें 'मुंशी जी' कहते थे।   बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी कर ली थी। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार के सदस्य प्यार से 'नन्हे' कहकर पुकारा करते थे।   बचपन से ही उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा था और शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए उन्हें कभी नदी पार करके विद्यालय जाना पड़ता था तो कभी कई मील नंगे पैर पैदल और गर्मी की मार सहते हुए.. लावे की तरह गरम सड़कों पर चलना पड़ता था।   उनका यही श्रम एवं साहस उनके निडर व्यक्तित्व की आधारशिला के रूप में सदैव उनके साथ रहा।    

शास्त्री जी सच्चे गांधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया।   भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा।   शास्त्री जी अपनी ईमानदारी और व्यवहार कुशलता के कारण अत्यंत लोकप्रिय थे। बहुत ही कम समय में शास्त्री जी ने अपनी नीतियों और प्रभावशाली नारों के साथ राष्ट्र का स्वरूप बदल दिया। शास्त्री जी ने नेहरू सरकार में गृह मंत्री के रूप में भी कार्य किया था और 1951 में रेल मंत्री की भूमिका का भी निर्वाहन किया था। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन और राष्ट्र निर्माण के लिए महात्मा गांधी की विरासत का पालन किया।   शास्त्री जी के अप्रतिम व्यक्तित्व का आभास इस बात से ही हो जाता है कि उनका सम्मान न केवल उनके दल के सदस्य करते थे.. अपितु अन्य दलों में भी शास्त्री जी को अत्यधिक सम्मान एवं प्रेम प्राप्त था।  

शास्त्री जी के अद्भुत व्यक्तित्व से सम्बंधित एक घटना है जो उनके त्याग एवं समर्पण की भावना का गुणगान करती है।     बात उस समय की है जब लाल बहादुर शास्त्री जी जेल में थे।  जेल से उन्होंने अपनी माता जी को पत्र लिखा कि 50 रुपये मिल रहे हैं या नहीं और घर का खर्च कैसे चल रहा है? माँ ने पत्र के जवाब में लिखा कि 50 रुपये महीने मिल जाते हैं और हम घर का खर्च 40 रुपये में ही चला लेते हैं।  तब शास्त्री जी ने संस्था को पत्र लिखकर कहा कि आप हमारे घर प्रत्येक महीने 40 रुपये ही भेजें.. बाकी के 10 रुपये दूसरे गरीब परिवार को दे दें।  जब पंडित जवाहरलाल नेहरू को इस बात का पता चला तो उन्होंने शास्त्री जी से कहा – “मैंने कई लोगों को बलिदान करते देखा लेकिन आपका बलिदान सबसे ऊपर था।  “ उस समय शास्त्री जी ने पंडित जी को गले लगाया और कहा – “मेरे पास बलिदान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।“

शास्त्री जी की यही सादगी उनके विरोधियों को भी उनका प्रशंसक बना देती थी।

शास्त्री जी के प्रधानमंत्री काल में भारत की शौर्य गाथा का एक अद्वितीय अध्याय आज भी भारतवासियों को गौरवान्वित कर देता है। 1964 में शास्त्री जी के प्रधानमंत्री पद को ग्रहण करने के अगले वर्ष.. 1965 का भारत पाक युद्ध आरम्भ हो गया। 3 वर्ष पूर्व चीन के साथ हुए युद्ध में पराजय के पश्चात.. इस युद्ध में विजय प्राप्त करना एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा था।  शास्त्रीजी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को कभी न भूल सकने वाली पराजय का स्वाद चखाया.. जिसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।  

इस युद्ध के पश्चात ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ लाल बहादुर शास्त्री जी की एक बैठक हुई.. जिसमें युद्ध में समझौते की घोषणा पर उन्होंने हस्ताक्षर किए।  उसी रात विवादास्पद परिस्थितियों में अज्ञात कारणों से शास्त्री जी की मृत्यु हो गयी। आज भी ताशकंद में हुई उनकी मृत्यु संसार के लिए एक रहस्य है।  

शास्त्रीजी को उनकी सादगी.. देशभक्ति और ईमानदारी के लिए आज भी भारत श्रद्धापूर्वक स्मरण करता है। उन्हें मरणोपरान्त देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सुशोभित किया गया.. जिसे मरणोपरान्त प्राप्त करने वाले वे सर्वप्रथम व्यक्ति थे। भारत समन्वय परिवार की ओर से सच्चे देशभक्त श्री लाल बहादुर शास्त्री जी को सादर नमन