Dadabhai Naoroji | ब्रिटिश संसद का सदस्य बनने वाले पहले भारतीय | The Grand Old Man of India
“Let us always remember that we are all children of our mother country. Indeed, I have never worked in any other spirit than that I am an Indian, and owe duty to my country and all my countrymen. Whether I am a Hindu, a Muslim, a Parsi, a Christian or any other creed, I am above all an Indian. Our country is India, our nationality is Indian.”
ये प्रेरक शब्द इस देश के अमूल्य पुत्र दादाभाई नौरोजी ने कहे थे। दादाभाई नौरोजी एक प्रमुख राष्ट्रवादी लेखक और प्रवक्ता थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे। उन्हें 'भारत का वयोवृद्ध पुरुष' यानि की ‘Grand Old Man of India’ कहा जाता है।
दादाभाई नौरोजी: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
वर्ष 1825 में मुंबई के एक गुजराती भाषी पारसी परिवार मे दादा भाई नौरोजी का जन्म हुआ। मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज, में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की। राजनीति में आने से पूर्व वर्ष 1855 मे एलफिंस्टन कॉलेज मे ही गणित और प्राकृतिक दर्शन के प्रोफेसर के रूप मे कार्य किया, अंग्रेजी शासन काल मे इस प्रकार की अकादमिक नियुक्ति प्राप्त करने वाले वो प्रथम भारतीय थे। इस संस्था मे एक अन्य प्रोफेसर ने उन्हे ‘The Promise of India’ कहा था। इसके बाद वाणिज्य में रुचि उन्हें इंग्लैंड ले गई, जहां उन्होंने अपना अधिकांश जीवन बिताया।
व्यवसाय और राजनीतिक जीवन की शुरुआत
दादाभाई नौरोजी एक कुशल व्यवसायी थे। वह कामा एंड कंपनी फर्म में भी भागीदार थे, जो ब्रिटेन में स्थापित होने वाली पहली भारतीय कंपनी थी। हालाँकि, तीन साल के भीतर उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया और 1859 तक अपनी खुद की कपास ट्रेडिंग कंपनी, दादाभाई नौरोजी एंड कंपनी की स्थापना की। इसके साथ ही उन्हें यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में गुजराती का प्रोफेसर भी बनाया गया। वर्ष 1867 में उन्होंने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना में सहायता की, जिसका उद्देश्य एशियाई लोगों को हीन मानने वाले प्रचलित विचारों का मुकाबला करना और भारतीय दृष्टिकोण को ब्रिटिश जनता के सामने रखना था।
यह संगठन वर्ष 1885 में भारतीय राष्ट्रीय संघ में विलीन हो गया, और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बन गया - मुख्य राष्ट्रवादी पार्टी जिसने ब्रिटिश शासन से भारतीय स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाया, आज भी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख पार्टी है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राष्ट्रवादी नेताओं से संबंध
वर्ष 1874 में, भारत वापस आकर, नौरोजी जी ने बाराडो के महाराजा के दीवान (मंत्री) के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन आरंभ किया और बाद में मुंबई की विधान परिषद के सदस्य बने।
नौरोजी के जीवनकाल के दौरान, भारतीय आबादी ब्रिटिश साम्राज्य के चार-पांचवें हिस्से से अधिक थी, लेकिन इस देश के 250 मिलियन लोगों को ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधित्व नहीं मिला। अपनी राजनीतिक भागीदारी जारी रखते हुए, नौरोजी एक बार फिर ब्रिटेन चले गए और हाउस ऑफ कॉमन्स के चुनाव के लिए कई बार खड़े हुए, हर बार उन्हें काफी नस्लवाद का सामना करना पड़ा। लंदन में सशक्त कंजर्वेटिव होलबोर्न सीट के लिए लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उनकी 1886 की बोली असफल रही और उनकी हार के बाद, प्रधान मंत्री लॉर्ड सैलिसबरी ने टिप्पणी करी कि एक अंग्रेजी निर्वाचन क्षेत्र एक 'काले आदमी' को चुनने के लिए तैयार नहीं। इस बयान के कारण नौरोजी का अपमान हुआ और लोकप्रिय व्यंग्य पत्रिका पंच ने एक कार्टून में नौरोजी को ओथेलो (Othello) और सैलिसबरी (Salisbury) को 'वेस्टमिंस्टर के डोगे' (Doge of Westminster) के रूप में चित्रित किया। फ्लोरेंस नाइटिंगेल और मताधिकार प्रचारकों का समर्थन प्राप्त करके नौरोजी एक प्रसिद्ध सार्वजनिक व्यक्ति बन गए। 1892 में उन्हें अंततः क्लेरकेनवेल (Clerkenwell) में सेंट्रल फिन्सबरी के मजबूत वर्ग की सीमांत सीट के लिए लिबरल उम्मीदवार के रूप में चुना गया और ग्लैडस्टोन की सरकार में शामिल हो गए।
जब दादाभाई नैरोजी ब्रिटिश संसद में सदस्यता के लिए चुने गए थे, तब बाल गंगाधर तिलक ने उनके लिए कहा था ‘If we twenty crore of Indians were entitled to send only one member to the British parliament, there is no doubt that we would have elected Dadabhai Naoroji unanimously to grace that post.’ वर्ष 1892 से 1895 तक इन्होंने युनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य के रूप मे कार्य किये।
भारत की स्वतंत्रता में योगदान के लिए सम्मान
हाउस ऑफ कॉमन्स में अपने समय के दौरान नौरोजी ने अपना समय भारत में स्थिति को सुधारने के लिए समर्पित किया और भारतीय स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाया। उन्होंने महिलाओं के लिए वोट, बुजुर्गों के लिए पेंशन, आयरिश घरेलू भूमिका और हाउस ऑफ लॉर्ड्स के उन्मूलन का भी समर्थन किया।
भावी मुस्लिम राष्ट्रवादी और पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा एक सांसद के रूप में कर्तव्यों में उनकी सहायता की। वर्ष 1895 के चुनाव में नौरोजी अपनी सीट हार गए, जब कंजर्वेटिवों ने दोबारा सत्ता हासिल की, लेकिन उन्होंने अपने जीवन के अंत तक प्रचार करना जारी रखा और 1906 में तीसरी बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और मोहनदास करमचंद (महात्मा) गांधी नैरोजी जी को अपने गुरु तुल्य मानते थे और उनका बहुत आदर करते थे।
इस राष्ट्र के लिए दादाभाई नौरोजी द्वारा किये गए कार्यों के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उनसे कहा था “The Indians look up to you as children to the father. Such is really the feeling here”.
इस देश की स्वतंत्रता और प्रगति मे विशिष्ट योगदान देने वाले दादाभाई नैरोजी को भारत समन्वय परिवार सादर प्रणाम करता है।
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