राष्ट्र प्रेम की एक अनूठी गाथा - चंद्रशेखर आज़ाद | स्वतंत्रता सेनानी | Bharat Mata
माँ हम विदा हो जाते हैं। हम विजय केतू फैराने आज. तेरी बलिवेदी पर चढ़कर मां निज शीश कटाने आज
मलिन वेश ये आंसू कैसे कंपित होता है क्यूँ गात, वीर प्रसूति क्यों रोती है? जब लग खडग हमारे आज
धरा शीघ्र ही धसक जाएगी। टूट जाएंगे ना झुके तार , विश्व काँपता रह जाएगा होगी माँ जब रण हुंकार
मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के महायज्ञ में न केवल शहीदों ने अपने रक्त और प्राणों की आहुति दी बल्कि अन्य महिलाओं ने अपने माथे का कुमकुम मांग का सिंदूर और बहनों ने राखी भी भीड़ चढ़ा दी। इस बलिदान के इतिहास में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का नाम ही सदा अमर रहेगा।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1996 को मध्य प्रदेश अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में पंडित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के परिवार में हुआ था। चंद्रशेखर आजाद द्वारा देश के लिए किए गए बलिदानों और स्वतंत्रता संग्राम में उनके विशाल योगदान के माध्यम से भारतीयों को सदा प्रेरणा मिलती रहेगी। चंद्रशेखर आजाद के देश प्रेमी के पेपर 1920 के जलियांवाला बाग हत्याकांड का अत्यधिक गहरा प्रभाव पड़ा।
अंग्रेजी सेना की टुकड़ी द्वारा स्वयं और निर्दोष नागरिकों की दिशा से हत्या और हजारों के घायल हो जाने का दर्द युवा आजाद को भावनात्मक रूप से प्रभावित करके अपनी संस्कृति शिक्षा देने के लिए चंद्रशेखर आजाद की बातें। वाराणसी के काशी विद्यापीठ भेजने का निश्चय किया जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए जब वह सिर्फ एक स्कूली छात्र थे। दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन किया। चंद्रशेखर आजाद ने आंदोलन में भाग लिया और उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। जब उन्हें एक जज के सामने पेश किया गया तो उन्होंने अपना नाम आजाद और अपने पिता का नाम स्वतंत्र बताया।
अमर क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद
चंद्रशेखर आजाद को उनकी पहली सजा के रूप में 15 चाबुकों की सजा सुनाई गई थी। चंद्रशेखर हर चाबुक की बार पर भारत माता की जय वंदे मातरम महात्मा गांधी की जय का उद्घोष करते रहे। बस तभी से उनका नाम चंद्रशेखर आजाद चंद्रशेखर आजाद बात भी 1922 में असहयोग आंदोलन के निलंबन के बाद और अधिक आक्रामक हो। बाद में भी राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा गठित एक क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए। उन्होंने तत्कालीन झाबुआ जिले के आदिवासी भरोसे जिसने अंग्रेजो के खिलाफ हथियार होकर संघर्ष के दौरान उनकी मदद लाजपत राय की शहादत के बाद भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद की एसोसिएशन में शामिल हो गए।
स्वतंत्रता में चंद्रशेखर आजाद का योगदान
शेखर आजाद भगत सिंह और अधिक युवकों को स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित गतिविधियों में प्रशिक्षित किया। आजाद ने कुछ समय के लिए झांसी को अपने संगठन का केंद्र बनाया। झांसी से 15 किलोमीटर ओरछा के जंगल को शूटिंग अभ्यास के लिए एक साइड के रूप में इस्तेमाल किया और एक विशेषज्ञ बाल होने के नाते उन्होंने अपने समूह के अन्य सदस्यों को प्रशिक्षित किया। झांसी में रहते हुए उन्होंने सदर बाजार के बुंदेलखंड मोटर गैरेज में कार चलाना भी। उनके मुख्य समर्थकों में से एक बुंदेलखंड केसरी दीवान शत्रुघ्न सिंह थे, जिन्होंने बुंदेलखंड में स्वतंत्रता आंदोलन की स्थापना की थी। रात को वित्तीय सहायता के साथ-साथ हथियारों और सेनानियों की सहायता भी दी।
काकोरी कांड में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका
उन्होंने 1925 में काकोरी कांड की योजना बनाकर अंग्रेजो के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। क्रांतिकारियों द्वारा चलाए गए आजादी के आंदोलन को सफल करने हेतु धन की जरूरत धन के लिए क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों का खजाना लूटने की योजना बनाई। सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर में राजेंद्र रात में ट्रेन की चेन खींच ली। इसके बाद देशभक्त क्रांतिकारी साथियों काकोरी में ट्रेन में रखा खजाना लूट लिया। आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने आगाह के साथियों को फांसी की सजा भी सुनाई। चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में सहायक पुलिस अधीक्षक की हत्या करके महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध ले लिया। क्रांतिकारी के रूप मे उन्होंने अपना नाम आजाद रख लिया।
उन्होंने शपथ ली थी की अंग्रेज काभी भी उन्हे जिंदा नहीं पकड़ पाएंगे। हम सब आजाद को क्रांतिकारी के रूप मे जानते हैं लेकिन उनका हृदय बहुत कोमल था। 23 फरवरी 1931 को पुलिस ने आजाद को घेर लिया और उनकी दाहिनी जांघ पर चोट लग गई। इस कठिन समय मे भी वे जरा भी नहीं घबराए उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के कारण स्वयं को गोली मार ली। वो अपनी मृत्यू के बाद भी आजाद रहे। आजाद की स्मृति मे उनके नाम पर अनेक पार्क, स्कूल और कॉलेज बनाए गये हैं। आजाद मात्र 25 साल तक जीवित रहे परंतु भारतीयों के हृदय मे वे सदा के लिए अमर रहेंगे।
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