ब्रम्हपुराण : जाने ब्रह्म पुराण के बारे में विस्तार से | Brahma Puran in Hindi | Ved & Puran

पुराण हिन्दुओं के धर्म सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं जिनमें संसार-ऋषियों-राजवंशों एवं प्रभु आस्था के वृत्तांत हैं. ये वैदिक काल के बहुत समय बाद के ग्रन्थ हैं, भारतीय आध्यात्मिक जीवनधारा में जिन ग्रंथों का महत्त्वपूर्ण स्थान है उनमें पुराण प्राचीन भक्ति ग्रंथों के रूप में बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पुराणों की इस शृंखला में आज हम प्रथम पुराण "ब्रम्ह पुराण" में निहित शाश्वत ज्ञान और भक्ति धारा की चर्चा करेंगे।

ब्रह्म पुराण संक्षिप्त परिचय (Brahma Vaivarta Purana)

ब्रम्ह पुराण का आरंभ इस कथा के साथ होता है कि प्राचीन काल की बात है कि नैमिषारण्य में मुनियों का आगमन हुआ, सभी ऋषि-मुनि वहां ज्ञानार्जन के लिए एकत्रित हुए। कुछ समय के बाद वहां सूतजी का भी आगमन हुआ तो मुनियों ने सूतजी का आदर सत्कार किया और कहा हे भगवन् आप अत्यन्त ज्ञानी हैं, आप हमें ज्ञान भक्तिवर्धक पुराणों की कथा सुनाइये, यह सुनकर सूतजी बोले, आप मुनियों की जिज्ञासा अति उत्तम है और इस समय मैं आपको ब्रम्ह पुराण सुनाऊंगा- पुराण के गणना क्रम में प्रथम स्थान होने के कारण यह पुराण "आदि ब्रम्ह" या आदि पुराण के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रम्हा जी द्वारा कथित तथा भगवान श्रीकृष्ण को ब्रम्ह मानकर उनका निरूपण करने के कारण भी यह ब्रम्ह पुराण कहलाता है।

पुराण सृष्टि की सृजन प्रक्रिया की गाथा का भी वर्णन करते हैं और सृजन के सर्जक ब्रम्हाजी के होने के कारण भी यह ब्रम्ह पुराण कहलाता है। सम्पूर्ण पुराण की कथा लोमहर्षण सूतजी व शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से है। यद्यपि उसकी मूल कथा के वक्ता स्वयं ब्रम्हाजी व श्रोता मरीचि हैं। इसमें सर्वप्रथम सृष्टि की उत्पत्ति व महाराज प्रथु के चरित्र का वर्णन है। इन्ही महाराज प्रथु के संबंध के कारण यह मृत्यु लोक पृथ्वी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गोरूप धारिणी पृथ्वी को दोहकर ही पृथु ने समस्त अन्नादी पदार्थों को प्राप्त किया और प्रजा को जीवन धारण का आधार दिया। इसके पश्चात 14 मन्वन्तरों तथा विवस्वान (सूर्य) की संतति परम्परा का विवरण है।

ब्रह्म पुराण अध्याय (Brahma Vaivarta Purana Krishna Janma Khanda)

सूर्य भगवान की उपासना संहिता इस पुराण का एक प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। इसके बाद चंद्रवंश के वर्णन में भगवान श्रीकृष्ण के अलौकिक चरित्र का माहात्म्य प्राप्त होता है। इसी प्रसंग में जम्बू द्वीप तथा विभिन्न द्वीपों सहित भारतवर्ष की भक्ति महिमा का विवरण प्राप्त होता है। इस पुराण की एक अन्य प्रमुख विशिष्टता पार्वती आख्यान है जो कि विस्तार से 34वें अध्याय से प्रारंभ होती है। ब्रम्ह पुराण का एक प्रसिद्ध प्रतिपाद्य विषय है- तीर्थ महात्म्य अर्थात तीर्थों की महिमा का गुणगान यथा एकाग्र क्षेत्र, अवन्तिका, चक्रतीर्थ, अश्वभानु तीर्थ, गरुड़ तीर्थ व गोवर्धन तीर्थ आदि।

इस प्रकार 79वें अध्याय से 277वें अध्याय तक लगभग 200 तीर्थों के महत्व, उनकी पाप विमोचिनी शक्ति व पावनता का वर्णन है परन्तु ब्रम्ह पुराण में जितने विस्तार से गौतमी नदी की व्यापक महिमा का वर्णन हुआ है वैसा अन्य किसी पुराण में उपलब्ध नहीं है। लगभग पुराण के आधे भाग में गौतमी या गोदावरी की पवित्रता, दिव्यता या महत्ता का ही वर्णन मिलता है। गौतमी के संबंध में नारद जी से ब्रम्हा जी कहते हैं कि गंगा के वास्तव में दो भेद हैं। विंध्य से उत्तर में भागीरथी गंगा व दक्षिण में गौतमी गंगा। भागीरथी गंगा का लोकहित हेतु राजा भागीरथ ने भगवान शंकर की जटाओं से अवतरण कराया था जबकि गौतमी गंगा का महर्षि गौतम ने अवतरण कराया था। गोदावरी के उद्गम स्थल से लेकर उसके सागर में विलीन होने तक मार्ग के तटवर्ती तीर्थों का जैसा चित्तमय, मनोहारी व काव्यामय वर्णन किया गया है वह अत्यन्त दुर्लभ है।

गौतमी के तटवर्ती तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन करते समय बड़ी ही रोचक कथाओं ( Mythological stories )के माध्यम से बड़े ही महत्वपूर्ण व शिक्षाप्रद आख्यान प्रस्तुत किए गए हैं। उदाहरण के लिए कपोत व व्याध का आख्यान, अंजना, केसरी व हनुमान का आख्यान, भार्गव-अंगिरा आख्यान, दधीचि-लोपमुद्रा पिप्लाद आख्यान, सरमा पणि आख्यान आदि। गोदावरी में बृहस्पति के सिंह राशि में स्थित होने पर स्नान-दान की विशेष महिमा व विशिष्टता का भी विस्तार से वर्णन मिलता है तथा संभवतः सिंहस्थ नामक कुम्भ पर्व का भी उत्तरोत्तर विकास इसी परंपरा के अनुरूप हुआ।

इसके पश्चात 179वें अध्याय से 212वें अध्याय तक में भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन है। 213वें अध्याय में भगवान विष्णु के दत्तात्रेय अवतार का भी वर्णन प्राप्त होता है। इसके पश्चात अत्यन्त संक्षेप में परशुराम अवतार व दशरथ नंदन भगवान श्रीराम की कथा प्राप्त होती है। अंत में भविष्य में कलियुग में कलि के अवतार का संकेत प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त श्राद्ध, पितृकल्प व वर्णाश्रम धर्म के साथ सांख्य व योग दर्शन के सिद्धांतों तथा विद्या, अविद्या जैसे दार्शनिक विषयों का भी संक्षिप्त परंतु सार्थक विवरण प्राप्त होता है। इस पुराण की एक अन्य विशिष्टता भारतवर्ष की महिमा का बड़ा ही भावुक व मर्मस्पर्शी वर्णन है जो 19वें से 26वें अध्याय में जम्बू द्वीप शीर्षक से प्राप्त होता है।

इस महिमा का एक श्लोक तो कालांतर में इतना प्रसिद्ध हो गया कि वह भारत की महानता का प्रतीक बन गया।

गायन्ति देवाः किल गीतकानि

धनयास्तु ते भारत भूमि भागे

स्वर्गापवर्गास्पद हेतु भूते भवन्ति भूयः पुरुषा मनुष्या ।

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