ब्रह्मवैवर्त पुराण: Brahma Vaivarta Puran in Hindi | 18 puranas

पुराणों (18 puranas) की ज्ञान श्रंखला में आज हम बात करेंगे 'ब्रह्मवैवर्त पुराण की। ब्रह्मवैवर्त शब्द का अर्थ है- ब्रहमा का विवर्त' अर्थात ब्रहमा की रूपान्तर राशि और ब्रह्मा की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस पुराण में प्राप्त होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कृष्ण को ही परब्रहम माना गया है, जिनकी इच्छा से ही सृष्टि का जन्म होता है। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण के चार खण्ड: Brahma Vaivarta Purana in Hindi

कृष्ण से ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश और प्रकृति का जन्म बताया गया है। उनके दाएँ पार्श्व से त्रिगुण (सत, रज, तम) उत्पन्न होते है। पंचमुखी शिव का जन्म कृष्ण के भने बाएँ पार्श्व से हुआ। नाभि से ब्रह्मा' वक्षस्थल से धर्म, वाम पार्श्व से पुन: लक्ष्मी, मुख से सरस्वती और विभिन्न अंगों से दुर्गा सावित्री, कामदेव, रति, अग्नि, 'वरुण, वायु आदि देवी-देवताओं का आविर्भाव हुआ। 
सृष्टि निर्माण के उपरान्त' राम' मण्डल में उनके अर्द्ध वाम अंग से राधा का जन्म हुआ। रोमकूपों से ग्वाल- बाल और गोपियों का जन्म हुआ । शिव जी को वाहन के लिए बैल, ब्रह्मा जी के लिए हंस, धर्म के लिए अश्व और दुर्गा के लिए सिंह प्रकट हुए। इस पुराण (sabse purana dharm kaun sa hai) के चार खण्ड है- ब्रह्म खण्ड, प्रकृति खण्ड, गणपति खण्ड और श्री कृष्ण जन्म खण्ड। इन चारों खण्डों में 218 अध्याय है। जिसमें 18,000 श्लोक हैं।

ब्रह्म खण्ड – 

ब्रह्म खण्ड (how many puranas are there) मे कृष्ण चरित्र की विविध लीलाओं और सृष्टि क्रम का वर्णन प्राप्त होता है। कृष्ण के शरीर से ही समस्त देवी-देवताओं का आविर्भाव माना गया है। इस खण्ड मे भगवान सूर्य द्वारा संकलित ‘आयुर्वेद संहिता’ का उल्लेख भी मिलता है। इसी खण्ड मे श्री कृष्ण के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप में राधा का प्राकट्य बताया गया है। 

प्रकृति खण्ड – 

इस खण्ड का प्रारम्भ "पंचदेवी रूपा प्रकृति" के वर्णन से होता है। ये पाँच रूप  दुर्गा, महालक्ष्मी सरस्वती, गायत्री और सावित्री के हैं, जो अपने भक्तों का उद्धार करने के लिए प्रकट होती है। इनके अतिरिक्त सर्वोपीर रासेश्वरी रूप राधा का है। राधा कृष्ण चरित्र और राधा जी की पूजा अर्चना का वर्णन इस खण्ड में प्राप्त होता है।

गणपति खण्ड – 

गणपति खण्ड में गणेश जी के 'जन्म की कथा और लीलाओं का वर्णन है बालक गणेश को जब शनिदेव देख लेते हैं- तो 'उनके दृष्टिपात से गणेश जी का सिर कटकर गिर जाता है, तब पार्वती की प्रार्थना करने पर विष्णु जी हाथी का सिर काटकर गणेश जी को लगा कर उन्हें जीवित कर देते हैं गणेश जी के आठ विघ्ननाशक नामों की सूची इस खण्ड में प्राप्त होती है जो इस प्रकार है विघ्नेश, गणेश, हेरम्ब, गजानन, लंबोदर, एकदंत, रूपकर्ण और विनायक। इसी खण्ड में 'सूर्य कवच' तथा 'सूर्य स्तोत्र' 'का भी वर्णन है। इसी खण्ड में 'काली कवच’ और ‘दुर्गा कवच’ का भी वर्णन मिलता है। 

श्री कृष्ण जन्म खण्ड | Brahma vaivarta purana krishna janma khanda 

यह खण्ड 101 अध्यायो में फैला सबसे बड़ा खण्ड है। इस खण्ड में योगनिद्रा द्वारा वर्णित 'श्री कृष्ण कवच का उल्लेख है। इस खण्ड में श्री कृष्ण के तैंतीस नाम, राधा जी के सोलह नाम और बलराम जी के नौ नामों का वर्णन मिलता है।. इसी खण्ड में विशेष तिथियों में विभिन्न तीर्थ स्थलों में स्नान और पुण्य लाभ का वर्णन किया गया है।  'कार्तिक पूर्णिमा' में राधा जी का पूजन विशेष फलदायी बताया गया है। इसी खण्ड मे अन्न दान को महादान बताया गया है। 

ब्रह्मवैवर्त पुराण मे रासलीला वर्णन 'भागवत पुराण' रास पंचाध्यायी से काफी भिन्न है। इस पुराण में गणेश जन्म कथा में भी भिन्नता है एवं विचित्रता है। इसके अतिरिक्त अनेक ब्राण्ड कक्चों का वर्णन, गंगा वर्णन तथा शिव स्तोत्र का वर्णन इस पुराण में प्राप्त होता है। इस पुराण में श्रीकृष्ण और राधा जी की गोलोक लीला का विस्तृत वर्णन किया गया है। 

इस पुराण का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। इस पुराण के अनुसार सृष्टि में असंख्य ब्रह्माण्ड हैं और वैज्ञानिक भी इस बात का समर्थन करते हैं। 

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