Shri Narad Puran | ऋषिगण सूतजी से कौन से 5 प्रश्न पूछते हैं? | क्या लिखा गया है नारद पुराण में?
नारद: परम आदर्श और समर्पित भक्ति
परम आदर्श और समर्पित भक्ति की व्याख्या यदि मात्र एक शब्द में लिखनी हो तो सबसे उपयुक्त शब्द ‘नारद’ ही होगा।
नारद का प्रभाव
वेद से पुराण तक, रामायण से महाभारत तक और गीता से स्मृतियों तक नारद हर स्थान पर अपूर्व प्रभाव के साथ उपस्थित हैं। उनकी गरिमा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि गीता में अर्जुन को अपनी विभूति का परिचय देते समय स्वयं श्री कृष्ण ने 10वें अध्याय के 26 वें श्लोक में कहा है की --
नारद का उद्धरण
‘अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:।’
अर्थात्
हे पार्थ! वृक्षों में मैं पीपल हूं और देवर्षियों में नारद हूं।
नारद पुराण का महत्व
नारद पुराण हिंदू पौराणिक कथाओं में से एक है। समस्त ऋषियों में श्रेष्ठ मुनि नारद के नाम पर रखा गया है और इसमें ब्रह्माण्ड की व्याख्या, पौराणिक कथाएं, वंशावली, और धार्मिक रीतियों का विस्तृत वर्णन है। इसमें भक्ति की महत्ता और आध्यात्मिक मुक्ति के मार्ग को भी अत्यधिक महत्व दिया गया है।
जहाँ नारद मुनि की चर्चा होती है वहां नारद पुराण का उल्लेख भी प्रत्यक्ष है।
नारद पुराण की विशेषताएँ
नारद पुराण एक वैष्णव पुराण है। इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय विष्णु भक्ति है।
नारद पुराण के प्रारंभ मे ऋषिगण सूत जी से पाँच प्रश्न पूछते है –
- भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का सरल उपाय क्या है?
- मनुष्य को मोक्ष किस प्रकार प्राप्त हो सकता है?
- भगवान के भक्तों का स्वरूप कैसा हो और भक्ति से क्या लाभ है?
- अतिथियों का स्वागत व सत्कार कैसे करे?
- वर्णों और आश्रमों का वास्तविक स्वरूप क्या है?
सूत जी ने उपरोक्त प्रश्नों का सीधा उत्तर नहीं दिया अपितु सनतकुमारों के माध्यम से बताया कि भगवान विष्णु ने अपने दक्षिण भाग से ब्रह्म और वाम भाग से शिव को प्रकट किया था। लक्ष्मी, उमा, सरस्वती, और दुर्गा आदि विष्णु की ही शक्तियाँ हैं। श्री विष्णु को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम साधन श्रद्धा, भक्ति और सदाचार का पालन करना है।
अतिथि का महत्व
भारत में अतिथि को देवता के समान माना गया है। अतिथि का स्वागत देवारचन समझकर ही करना चाहिए। वर्णों और आश्रमों का महत्व प्रतिपादित करते हुए यह पुराण ब्राह्मणों को चारों वर्णों में श्रेष्ठ मानता है। क्षत्रिय का कार्य समाज की रक्षा करना है तथा वैश्य का कार्य व्यापारिक गतिविधियों से समाज को पोषित करना है।
गंगा का अवतरण
नारद पुराण में गंगा अवतरण का प्रसंग और गंगा के किनारे स्थित तीर्थों का विस्तार से वर्णन है। प्रारंभ में यह 25000 श्लोकों का संग्रह था परन्तु वर्तमान संस्करण में मात्र 22000 श्लोक ही उपलब्ध हैं।
नारद पुराण को दो भागों मे विभक्त किया गया है पूर्व भाग और उत्तर भाग। पहले भाग मे 125 अध्याय और दूसरे भाग मे 82 अध्याय है।
पूर्व भाग की विशेषताएँ
पूर्व भाग में ज्ञान के विविध सोपानों का वर्णन है। एतिहासिक गाथाएँ, धार्मिक अनुष्ठान, ज्योतिष, मंत्र विज्ञान, गंगा माहात्म्य तथा ब्रह्म के मानस पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार आदि का नारद से संवाद प्राप्त होता है। 18 पुराणों की सूची और उनके मंत्रों की संख्या का उल्लेख भी है।
उत्तर भाग की जानकारी
उत्तर भाग में वेदों के छः अंगों का विश्लेषण है। ये अंग हैं - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष।
शिक्षा
इसमें मुख्य रूप से स्वर, वर्ण, मंत्रों की तान, राग, छंद एवं देवताओं का परिचय वर्णित किया गया है।
कल्प
कल्प में हवन एवं यज्ञ आदि की चर्चा की गई है। इसमें काल गणना का वर्णन भी है।
व्याकरण
व्याकरण में शब्दों के रूप तथा उनकी सिद्धि आदि का पूरा विवेचन किया गया है।
निरुक्त
इसमें शब्दों के रूढ यौगिक और योगारूढ स्वरूप को समझाया गया है।
ज्योतिष
इसमें गृह नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य संक्रमण आदि विषयों का ज्ञान है।
छंद
इसमें वैदिक और लौकिक छंदों के लक्षणों आदि का वर्णन है। भारतीय गुरुकुलों तथा आश्रमों के शिष्यों को 14 विद्याएँ सिखाई जाती हैं - चार वेद, छह वेदांग, पुराण, इतिहास, न्याय, और धर्म शास्त्र।
गौ हत्या और तीर्थों का महत्त्व
इस पुराण के अंत में गौ हत्या और देव निन्दा की निन्दा भी की गई है, और साथ ही गंगावतरण के प्रसंग और गंगा के किनारे स्थित तीर्थों का महत्त्व विस्तार से वर्णित किया गया है।
सूर्यवंशी राजा बाहु के पुत्र सागर थे। विमाता द्वारा विष दिए जाने पर ही उसका नाम 'सागर' पड़ा था। सागर द्वारा शक और यवन जातियों से युद्ध का वर्णन भी इस पुराण में मिलता है। सागर वंश में ही भगीरथ अवतरित हुए थे। उनके प्रयास से गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आई थीं। इसलिए गंगा को 'भागीरथी' की संज्ञा भी दी गयी है।
हमारी पावन संस्कृति
पुराण हमारी पावन संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर हैं। भारत माता चैनल का प्रयास है कि मानवता के ये पावन सन्देश जन-जन तक पहुंचे जिससे कि जनमानस इन्हें आत्मसात कर सके, और विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सके।
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