Skanda Purana | स्कन्द पुराण को क्यों कहते हैं महापुराण? | स्कन्द महापुराणम्

धर्म का सम्पूर्ण ज्ञान: स्कन्द पुराण

वर्तमान समय में विश्व को धर्म का सम्पूर्ण ज्ञान देना, वेदों और पुराणों द्वारा ही संभव है। पुराणों के कारण ही धर्म की रक्षा और भक्ति का मनोरम विकास हो रहा है। महर्षि वेदव्यास रचित 18 पुराणों में से एक पुराण स्कन्द पुराण है। स्कन्द का अर्थ होता है- क्षरण अर्थात विनाश। भगवान शिव संघार के देवता हैं। शिव-पुत्र कार्तिकेय का नाम ही स्कन्द है। ‘स्कन्द पुराण’ शैव संप्रदाय का पुराण है। यह अट्ठारह पुराणों में सबसे बड़ा है। इसके छह खंड हैं – माहेश्वर खण्ड, वैष्णव खण्ड, ब्रह्म खण्ड, काशी खण्ड, अवन्तिका खण्ड और रेवा खण्ड। एक अन्य ‘स्कन्द पुराण’ भी है जिसे इस पुराण का उप-पुराण कहा जा सकता है। यह छह संहिताओं- सनतकुमार संहिता, सूत संहिता, शंकर संहिता, वैष्णव संहिता, ब्रह्म संहिता तथा सौर संहिता में विभाजित है। 

‘स्कन्द पुराण’ में 81,000 श्लोक हैं। इस पुराण का प्रमुख विषय भारत के शैव और वैष्णव तीर्थों के महात्म्य का वर्णन करना है। शिव के साथ ही इसमें विष्णु और राम की महिमा का भी सुंदर विवेचन किया गया है। ‘रामचरित मानस’ में इस पुराण का व्यापक प्रभाव दिखाई देता है। 

माहेश्वर खण्ड

इस खण्ड में दक्ष-यज्ञ वर्णन, सती दाह, देवताओं और शिव गणों में युद्ध, दक्ष-यज्ञ विह्वन्स, लिंग प्रतिष्ठा वर्णन, समुद्र मंथन, श्री लक्ष्मी जी की उत्पत्ति, अमृत विभाजन, शिवलिंग महात्म्य, राशि-नक्षत्र वर्णन, दान-भेद वर्णन, सुतनु – नारद संवाद आदि का वर्णन है। 

यथा शिवस्तथा विष्णु:
अन्तरं शिवविष्ण्वोश्र भनागपि न विद्यते।।

अर्थात जिस प्रकार शिव है उसी प्रकार विष्णु है और जैसे विष्णु हैं, वैसे ही शिव हैं। दोनों में कोई अंतर नहीं है। इसका भी वर्णन है। 

इसमें ब्रह्म, विष्णु, शिव, इन्द्र, गंधर्व, ऋषि-मुनि, दैत्य-दानव आदि की सुंदर कथाओं का वर्णन है। स्कन्द पुराण में ‘माया-मोह’ के नाम से बुद्धवतार का विस्तृत वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से अहिंसा और ‘सेवा-भाव’ का मार्ग प्रशस्त किया गया है। इसी खण्ड के कौमारिका खण्ड में एक कन्या के पालन के फल को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है। 

वैष्णव खण्ड

वैष्णव खण्ड में वेंकटाचल महात्म्य, वराह मंत्र उपासना विधि, ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर विष्णु का आविर्भाव, जगन्नाथपुरी का रथ महोत्सव, बद्रीकाश्रम तीर्थ की महिमा, कार्तिक मास की महिमा, ज्ञान, वैराग्य एवं भक्ति का स्वरूप तथा कर्म योग का वर्णन है। इस खण्ड में गंगा, यमुना और सरस्वती खण्ड अत्यंत पवित्र तथा उत्कृष्ट है। 

बद्रीकाश्रम की महिमा का बखान करते हुए स्वयं शंकर जी कहते हैं कि इस तीर्थ में नारद शीला, मार्कंडेय शीला, गरुण शिला, वराह शिला और नारसिंघी शिला – ये पाँच शिलाएं सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध करने वाली हैं, इसी खण्ड में महात्म्य का वर्णन भी है। 

ब्रह्म खण्ड

ब्रह्म खण्ड में रामेश्वर क्षेत्र के सेतु और श्री राम द्वारा बालुकामय शिवलिंग की स्थापना की महिमा वर्णित है। इस क्षेत्र के अन्य 24 प्रधान तीर्थों- चक्र तीर्थ, सीता सरोवर तीर्थ, मंगल तीर्थ, ब्रह्म कुंड, हनुमत कुंड, अगस्त्य तीर्थ, राम तीर्थ, लक्ष्मण तीर्थ, लक्ष्मी तीर्थ, अग्नि तीर्थ, शिव तीर्थ, शंख तीर्थ, गंगा तीर्थ, कोटि तीर्थ, मानस तीर्थ, धनुषकोटि तीर्थ आदि की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसी खण्ड में पंचासर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ की महिमा का वर्णन है। इसी खण्ड में अश्वत्थामा द्वारा सोते हुए पांडव पुत्रों के वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए धनुषकोटि तीर्थ में स्नान करने की कथा कही गई है। 

काशी खण्ड

इस खण्ड में गायत्री महिमा, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट का आख्यान, दशहरा स्तोत्र कथन, ज्ञानवापी महात्म्य, त्रिलोचन आविर्भाव तथा व्यास भूपन स्तम्भ आदि का उल्लेख है। काशी में देह त्यागना सबसे बड़ा दान और तप बताया गया। अपनी आत्मा के ही साथ क्रीड़ा करने वाले, सदा आत्मा के ही साथ योग स्थापित करने वाले तथा अपनी आत्मा में जी संतृप्त रहने वाले व्यक्ति को योग की सिद्धि प्राप्त करने में विलंब नहीं लगता। काशीपुरी में पापकर्म करने वाला व्यक्ति त्रिलोचन भगवान शिव के लिंग का नमन करके पापमुक्त हो जाता है। 

अवन्तिका खण्ड

अवन्तिका उज्जैन नगरी का प्राचीन नाम है। अवन्तिका खण्ड में महाकाल प्रशंसा, अग्नि स्तवन, विद्याधर तीर्थ, वाल्मीकेश्वर महिमा, सोमवती तीर्थ, रामेश्वर तीर्थ, सौभाग्य तीर्थ, गया तीर्थ, नाग तीर्थ, गंगेश्वर तीर्थ, प्रयागेश्वर तीर्थ आदि का महात्म्य, क्षिप्रा नदी की महिमा, अवन्तिका महिमा आदि का विस्तार से वर्णन है। 

अवन्तिका खण्ड में पवित्र नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी, वितस्ता, चंद्रभाग आदि की महिमा वर्णित है। इस खण्ड में संतकुमार जी क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित अवन्तिका तीर्थ के दर्शन मात्र से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। 

रेवा खण्ड

स्कन्द पुराण का रेवा खण्ड पुराण संहिता का विस्तार पूर्वक वर्णन करता है। इसमें रेवा महात्म्य, नर्मदा, कावेरी और संगम की महिमा, सृष्टि संघार वर्णन, सत्यनारायण व्रत कथा वर्णन है। विविध तीर्थों- मेघनाथ तीर्थ, भीमेश्वर तीर्थ, नारदेश्वर तीर्थ, मधूसकंध तीर्थ, करंज तीर्थ, कामद तीर्थ, केदारेश्वर तीर्थ, पिशाचेश्वर तीर्थ, अग्नि तीर्थ, सर्प तीर्थ, श्रीकपाल तीर्थ एवं जमदग्नि तीर्थ आदि तीर्थों का वर्णन मिलता है। देवताओं के सेनापति बनने के पूर्व जिस स्थान पर कार्तिकेय ने तप किया था, वह स्थान स्कन्द तीर्थ के नाम से वर्णित है। नर्मदा तटवर्ती तीर्थों का विशद वर्णन स्कन्द पुराण में है। नर्मदा को शिव जी के पसीने से उत्पन्न माना जाता है, जो गंगा की भांति पावन मानी जाती है। इस पुराण में निष्काम कर्म योग पर विशेष उपदेश दिया गया है। जिसमें मोक्ष मानों एक नगर है, जिसके चार दरवाजे सम, सदविचार, संतोष और सत्संग इसके चार द्वारपाल हैं। इन्हें संतुष्ट करके ही इस नगर में प्रवेश पाया जा सकता है। 

इस पुराण में दारुकवन उपाख्यान में शिवलिंग की महिमा का वर्णन है। अरुणाचल रहस्य वर्णन भी है। स्कन्द पुराण में जितने तीर्थों का उल्लेख है, उनमें कुछ तीर्थ खंडहरों में परिवर्तित हो चुके हैं। जिस कारण उनका सही पता नहीं लग सका। यदि इस पुराण को तीर्थों की निर्देशिका माना जाए तो अनुचित ना होगा। 

पुराण हिन्दू धर्म और हमारी संस्कृति की वो पावन धरोहर है, जो आज भी ज्ञान-प्रसार और जन-कल्याण में अत्यंत सहायक हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं के विस्तृत आध्यात्मिक सन्देश प्राप्त करने के लिए subscribe करें Bharat Mata Channel