रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें | Happy Ram Navami | Bharat Mata

यह अमिट और सर्वमान्य सत्य है.. कि मानवता मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ अलंकरण और आभूषण है.. किन्तु यह भी सच है कि मानवता को अपने अस्तित्व और सरंक्षण के लिए मानव की आवश्यकता है। पल भर के लिए यदि हम इस डरी और सहमी हुई मानवता से.. उसकी कल्पना और भविष्य की सुन्दर आकांक्षा के बारे में पूँछें.. तो उसका उत्तर शायद एक शब्द में होगा और निश्चित रूप से वह शब्द होगा – राम। मानवता भी शायद राम की आशा में ही जीवित है। जब जब सिसकती और डरी हुई मानवता ने.. अपनी रक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है.. तो विधाता को धरती पर अवतरित होना पड़ा है। साधन.. समय और स्वरूपों का अंतर तो होता रहा पर घनश्याम और राम में “तत्व” तथा उनके “उद्देश्य” तो सदा से एक ही रहे हैं। 

चैत्र शुक्ल नवमी के दिन.. त्रेता युग में रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ एवं महारानी कौशल्या के यहाँ.. अखिल ब्रम्हांड नायक ने पुत्र के रूप में जन्म लिया था। दिन के 12 बजे जैसे ही सौन्दर्य निकेतन.. शंख.. चक्र.. गदा एवं पद्म धारण किये हुए.. चतुर्भुज धारी.. श्री राम प्रगट हुए तो मानो माता कौशल्या.. उन्हें देखकर विस्मित हो गईं। उनके सौन्दर्य एवं तेज को देखकर उनके नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे। 

श्री राम के जन्मोत्सव को देखकर.. देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता.. ऋषि.. किन्नर.. चारण.. सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। 

राम जन्म के कारण ही इस तिथि को रामनवमी कहा जाता है और इस दिन को रामजन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। रामनवमी का त्यौहार भारत के लोगों के द्वारा ही नहीं.. बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। ये त्यौहार अत्यंत उत्साह और ख़ुशी के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर जो भक्त उपवास करते हैं.. उन्हें अपार सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। श्री राम नवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है.. उनकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त विचार शक्ति.. बुद्धि.. श्रद्धा.. भक्ति और पवित्रता की भी वृद्धि होती है। 

श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन..
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख..
कर कंज पद कंजारुणं ॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि..
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि..
नोमि जनक सुतावरं ॥

गोस्वामी तुलसीदास ने उपरोक्त शब्दों के माध्यम से श्री राम के गुणों एवं शक्ति को वर्णित किया है और अपने आराध्य प्रभु श्री राम के श्री चरणों में भक्तिमय स्तुति की है।

रामनवमी अर्थात रामजन्मोत्सव के अवसर पर मंदिरों और घरों को ध्वजा.. पताका.. तोरण और बंधनवार आदि से सजाने का विधान है। इस दिन कलश स्थापना और श्री राम तथा माता जानकी की पूजा की जाती है। दिन में भगवान श्री राम के भजन.. स्मरण.. दान आदि की भी परंपरा है। रात्रि में गायन.. वादन.. भजन आदि के माध्यम से श्री राम की स्तुति को अत्यंत शुभ माना जाता है। रामनवमी के अवसर पर हज़ारों लोग.. अयोध्या पहुँच कर.. पुण्य सलिला सरयू नदी में स्नान कर पुण्यार्जन करते हैं। घरों और मंदिरों में रामचरितमानस का पाठ भी किया जाता है। 

महाकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी काव्य रचना में राम के आदर्शमय महान जीवन के विषय में सहजता से लिखा है – 

“राम.. तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है.. 

कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।“

श्री राम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तम्भ है। भगवान राम मर्यादा के परम आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्री राम सदैव कर्त्तव्य निष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। उन्होंने कभी भी लोक मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रगट नहीं होने दिया। इस प्रकार मर्यादा पुरषोत्तम के रूप में श्री राम सर्वत्र व्याप्त हैं। 

भगवान राम की चारित्रिक विशेषताएं.. उनका जीवन एवं शिक्षाएं.. आज भी सर्वथा प्रासंगिक हैं और आने वाले युगों तक मानव के लिए एक प्रेरणा रूप में विद्यमान रहेंगीं। 

राम का अर्थ है स्वयं का प्रकाश अर्थात स्वयं के भीतर की ज्योति। 

रवि शब्द का अर्थ “राम” शब्द का पर्यायवाची है। रवि शब्द में “र” का अर्थ है प्रकाश और “वि” का अर्थ है विशेष। इसका अर्थ है हमारे भीतर का शाश्वत प्रकाश। हमारे ह्रदय का प्रकाश ही राम है.. इस प्रकार हमारी आत्मा का प्रकाश ही राम है। 

श्री राम विष्णु के अवतार हैं.. वे आदि-पुरुष हैं.. जो मानव मात्र की भलाई के लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाइयों तथा कष्टों का उन्होंने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मूल्यों का सरंक्षण किया जा सके तथा आसुरी प्रवृत्तियों को नष्ट किया जा सके। रामवतार भगवान विष्णु के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतारों में सर्वोपरि है। 

रामचरित मानस के रचयिता.. गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार श्री राम नाम के दो अक्षरों में “रा” तथा “म” ताली की आवाज़ की तरह हैं.. जो संदेह के पक्षियों को हमसे दूर ले जाती है। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। 

मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को.. पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले.. प्रभु श्री रामचन्द्र जी के समान.. दूसरा कोई चरित्र नहीं है।

आदि कवि वाल्मीकि ने उनके सम्बन्ध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान हैं। 

“समुद्र इव गाम्भीर्ये.. धैर्यण हिमवानिव।“

हम राम के जीवन पर दृष्टि डालें.. तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती। जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए.. राम ने उस समय वैसा ही किया। राम.. रीति.. नीति.. प्रीति.. सभी जानते हैं। राम एक परिपूर्ण आदर्श हैं। राम ने नियम एवं त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है। 

उपनिषदों में राम नाम.. ॐ अथवा अक्षर ब्रह्म है व इसका तात्पर्य तत्वमसि महावाक्य है। रामचरितमानस में इसे “बीजमंत्र”.. “मंत्रराज” तथा “महामंत्र” की संज्ञा देकर.. कलिग्रस्त जीवों के उद्धार का एक मात्र साधन बताया गया है। इसे वेदों का प्राण.. त्रिदेवों का कारण और ब्रह्म राम से अधिक महिमामय वर्णित किया गया है। 

रामनवमी के पावन पर्व के अवसर पर.. गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना का श्री गणेश किया था।

राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है.. बस ज़रूरत है श्रद्धा.. विश्वास और भक्ति की। राम नाम स्वयं ज्योति है.. स्वयं मणि है। राम नाम के महामंत्र को जपने में किसी विधान या समय का बंधन नहीं है।

भारत समन्वय परिवार की ओर से प्रभु श्री राम के श्री चरणों में शत शत नमन। हमारा प्रयास है कि मातृभूमि की प्राचीनतम गौरवशाली संस्कृति की ये पावन गंगा.. अपनी अविरल पवित्रता से जनमानस के लिए कल्याणकारी हो और जन जन के ह्रदय में सदा जीवंत और अमर रहे। 

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