धर्म ग्रंथों के अनुसार सतयुग, त्रेता और द्वारापर हर युग मे जब अधर्म ने पैर पसारना शुरू किए तब भगवान विष्णु ने अवतार लेकर पुन: धर्म को स्थापित किया। शास्त्रों में भगवान विष्णु के 24 अवतारों का वर्णन है, इनमे 10 प्रमुख हैं। जिसमें से श्रीहरि का 'कल्कि अवतार' होना बाकी है। कल्कि अवतार को भगवान विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है। मान्यता है कि कल्कि अवतार के बाद कलियुग समाप्त हो जाएगा। चलिए जानते हैं कल्कि अवतार से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
कब होगा भगवान विष्णु का कल्कि अवतार?
द्वादश्यां शुक्ल-पक्षस्य माधवे मासि माधवम्।
जातं ददृशतुः पुत्रं पितरौ हृष्ट-मानसौ।।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कलियुग 432000 वर्ष का है, जिसका अभी प्रथम चरण चल रहा है. जब कलयुग का अंतिम चरण शुरू होगा, तब कल्कि अवतार लेंगे। कहते हैं कलियुग एक पैर पर चल रहा है, और वो एक पैर है धर्म। इसके अंतिम वर्षों में धर्म का स्तर बहुत ही कम हो जाएगा। अधर्म पूरी तरह से व्याप्त हो जाएगा। अच्छी बारिश नहीं होगी। बारिश के बजाय तूफान या बाढ़ अक्सर होंगे। निर्दोष लोगों को कोई बचाव नहीं मिलेगा। लड़ाई और झगड़े उच्च स्तर पर होंगे। मानवों की ऊँचाई कम हो जाएगी। लोग नैतिकता और मानवता को भूल जाएंगे। इस परिस्थिति में भगवान श्रीनिवास (विष्णु) कल्कि भगवान (kalki avatar kab hoga) के रूप में पृथ्वी पर अवतरित होंगे। किमविदंती है की भगवान कल्कि, कलिपुरुष की शक्ति को अपनी तलवार "नंदकम" से नियंत्रित करेंगे।
कल्कि अवतार कहाँ होगा?
श्रीमद्भागवत महापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से वर्णित है। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा (who is kalki avatar) विस्तार से दी गई है जिसमें यह कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के संभल नामक ग्राम मे विष्णुयश और सुमति नाम के ब्राह्मणों के घर पर ही भगवान विष्णु कल्कि रूप मे अवतरित होंगे।
शम्भल ग्राम मुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति॥
भगवान विष्णु का यह अवतार "निष्कलंक भगवान" के नाम से भी जाना जायेगा। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की भगवान श्री कल्कि 64 कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार होंगे।
कल्कि पुराण के अनुसार- परशुराम जो की सप्त चिरंजीवियों मे से एक हैं, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिये प्रेरित करेंगे। समय का चक्र फिर से चलेगा जब भगवान कल्कि देवदत्त नाम के श्वेत घोड़े पर सवार होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे, तब सतयुग का पुनः आरंभ होगा।
भगवान विष्णु के अन्य नौ अवतारों का वर्णन
श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान के 22 अवतारों का वर्णन है, वहीं कुछ धर्मशास्त्रों में 24 अवतार भी बतलाए गए हैं. जिनमें से “दशावतार” (दस अवतार) प्रमुख हैं. गरुड़ पुराण में दशावतार का वर्णन है. वे हैं- मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार.
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मत्स्य अवतार
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के प्रथम अवतार है। मछली के रूप में अवतार लेकर भगवान विष्णु ने एक ऋषि को सब प्रकार के जीव-जंतु एकत्रित करने के लिए कहा और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस ऋषि की नाव की रक्षा की। इसके पश्चात ब्रह्मा ने पुन: जीवन का निर्माण किया ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुराकर सागर की अथाह गहराई में छुपा दिया, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों को प्राप्त किया और उन्हें पुन: स्थापित किया।
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कूर्म अवतार
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं को अपनी शक्ति पर बहुत अहंकार हो गया था। एक बार महर्षि दुर्वासा ने इंद्र को परिजात पुष्प की माला भेंट की थी। अहंकारवश इंद्र ने उस माला को ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दिया। यह देख ऋषि को इंद्र पर क्रोध आ गया और उन्होंने देवताओं को श्रीहीन होने का श्राप देकर उनकी सुख-समृद्धि खत्म कर दी थी। श्राप के प्रभाव से लक्ष्मी सागर में लुप्त हो गईं। इससे सुर-असुर लोक का सारा वैभव नष्ट हो गया। इस घटना से दुखी होकर इंद्र भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने इंद्र को देवताओं और दानवों सहित समुद्र मंथन के लिए कहा। तब भगवान विष्णु के कहे अनुसार राक्षस और देवता मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। देव-राक्षसों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर मंथन करना शुरू किया लेकिन पर्वत का आधार नहीं होने के कारण वो समुद्र में डूबने लगा। ये देखकर भगवान विष्णु ने बहुत बड़े कूर्म (कछुए) का रूप लेकर समुद्र में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया। इससे पर्वत तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन पूरा हुआ।
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वराह अवतार
वराह, हिंदू भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से तीसरा। जब एक राक्षस जिसका नाम वराह था, ने अपना वध किया। हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र की तलहटी में खींच लिया, विष्णु ने उसे बचाने के लिए वराह का रूप धारण किया। वे एक हजार साल तक लड़े। फिर वराह ने राक्षस का वध किया और अपने दाँतों से पृथ्वी को पानी से बाहर निकाला। यह मिथक प्रजापति ( ब्रह्मा ) की एक पुरानी सृष्टि कथा को दर्शाता है, जिन्होंने पृथ्वी को आदिम जल से ऊपर उठाने के लिए वराह का रूप धारण किया था।
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नरसिंह अवतार
प्राचीन काल के समय की बात है राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था कि उसे न तो कोई मानव मार सके और न ही कोई पशु, न दिन में उसकी मृत्यु हो और न ही रात में, न घर के भीतर और न बाहर, न धरती पर और न आकाश में, न किसी अस्त्र से और न ही किसी शस्त्र से। यह वरदान प्राप्त कर उसे अहंकार हो गया कि उसे कोई नहीं मार सकता। वह स्वयं को ही भगवान समझने लगा। उसके अत्याचार से तीनों लोक त्रस्त हो उठे।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। उसने प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोकने के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन हर प्रयास उसका बेकार गया। एक दिन जब प्रह्लाद ने उससे कहा कि भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं, तो हिरण्यकश्यप ने उसे चुनौती देते हुए कहा कि अगर तुम्हारे भगवान सर्वत्र हैं, तो इस स्तंभ में क्यों नहीं दिखते? यह कहते हुए उसने अपने राजमहल के उस स्तंभ पर प्रहार कर दिया। तभी स्तंभ में से भगवान विष्णु नृसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को उठा लिया और उसे महल की दहलीज पर ले आए। भगवान नृसिंह ने उसे अपनी जंघा पर लिटाकर उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की।
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वामन अवतार
दैत्यराज बलि ने अपने बल से तीनों लोकों पर कब्जा जमा लिया और इंद्र देव से स्वर्ग लोक भी छीन लिया था। राजा बलि भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था और खूब दान पुण्य भी करता था, लेकिन इसके बावजूद उसे अपनी शक्ति पर इतना घमंड हो गया कि स्वर्ग का स्वामी बनते ही सभी देवी देवताओं को परेशान करने लगा। उसके अत्याचारों से तंग आकर सभी देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई. श्री हरि विष्णु ने उन्हें आश्वसान दिया कि वह तीनों लोकों को राजा बलि के कब्जे से मुक्त करा कर रहेंगे। अपने इस वचन को निभाने के लिए उन्होंने त्रेतायुग में धरती पर भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर माता अदिति और कश्यप ऋषि के पुत्र के रूप में जन्म लिया।
इसके बाद वह एक बौने ब्राह्मण का रूप धरकर राजा बलि के पास पहुंच गए। उनके एक हाथ में छाता और दूसरे में लकड़ी थी. उन्होंने राजा बलि से अपने रहने के लिए तीन पग भूमी दान में देने को कहा। इसके बाद वामन देव ने इतना विशाल रूप धारण किया कि अपने एक पैर से पूरी धरती और दूसरे पैर से पूरे स्वर्ग लोक को नाप लिया। जब तीसरे पैर के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर आगे करते हुए इस वामन देव को इस पर पैर रखने के लिए कहा। भगवान विष्णु बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया।
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परशुराम अवतार
पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम का पहले नाम राम था। लेकिन महादेव ने उन्हें शस्त्र विद्या दी थी। शस्त्र विद्या के बाद प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें 'फरसा' दिया। परशु मिलने के कारण उनका नाम परशुराम पड़ गया। इसके साथ ही शिव जी ने उन्हें श्रेष्ठ योद्धा का वरदान दिया था। कहा जाता है कि परशुराम का जन्म ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए हुआ था। इसके साथ ही वह युद्ध कला में माहिर थे। उन्होंने भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे कई योद्धाओं को शिक्षा दी।
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राम अवतार
कथा के अनुसार, त्रेतायुग में श्रीराम का जन्म हुआ। वह त्रिदेवों में से एक विष्णु के अवतार हैं। इस अवतार के लेने का क्या कारण रहा और ये अवतार क्यों हुआ इसकी एक नहीं अनेक वजहें हैं। सीधे शब्दों में यह अवतार कई वरदानों और श्रापों का सुमेलित परिणाम है। किसी को भगवान ने वरदान दिया तो उसकी पूर्ति श्रीराम के जन्म से हुई और किसी को कर्मदंड से श्राप मिला तो उसकी परिणिति और उद्धार भी श्रीराम जन्म से हुआ। इसीलिए श्रीराम को तारक और पातक कहा गया है।
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कृष्ण अवतार
ईश्वरीय विधान है कि सभी युग के अंत में भगवान का अवतार होता और वह धर्म की स्थापना करते हैं। इसके बाद चल रहा युग समाप्त होता है और नया युग आरंभ होता है। द्वापर में धरती महान योद्धाओं की शक्ति से दहल रही थी। जनसंख्या का भार भी काफी हो गया था। अगर उस युग के योद्धाओं का अंत नहीं होता तो धरती पर शक्ति का असंतुलन हो जाता। शक्ति के संतुलन और नए युग के आरंभ के लिए श्रीकृष्ण ने अवतार धारण किया। महाभारत का महायुद्ध शक्ति के संतुलन और धर्म की स्थापना के लिए किया गया था जिसकी पटकथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने लिखी थी। महायुद्ध से ही कलियुग के आगमन की आहट शुरू हो गई।
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बुद्ध अवतार
भागवत के स्कंध एक के अध्याय 6 में इसका वर्णन मिलता है –
ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्।
बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥
अर्थात कलयुग में दैत्यों को मोहित करने के लिए भगवान विष्णु कीकट प्रदेश में अजन के पुत्र के रूप में प्रकट होंगे। कीकट मगध का मध्य क्षेत्र या गया को माना गया है।
स्कंद पुराण में महर्षि मारकंडे जब युधिष्ठिर से दशावतार का वर्णन करते हैं तो उसमें विष्णु के एक अवतार बुद्ध भी हैं। उसमें कहा गया है कि बुद्ध अवतार में भगवान का रूप शांत होगा और उस रूप के द्वारा वे संपूर्ण संसार को मोहित कर लेंगे।
कहते हैं की आने वाले समय मे जैसे-जैसे कलियुग अपनी चरण सीमा पर जाएगा, वैसे-वैसे मानव ही राक्षस रूप धारण का लेगा। क्रूरता, हिंसा और लालच इतना बढ़ जाएगा की इन दुष्कर्मों का विनाश करने के लिए स्वयं नारायण आएंगे। समय का चक्र फिर से चलेगा और सतयुग का पुनः आरंभ होगा।