Ahilyabai Holkar : Queen of the Malwa Kingdom

        परम-पुनीता शील सुनीता, दुर्गा थी मा काली थी

        प्रजा-देवी रानी भारत की,वही मालवा वाली थी|            

3 मार्च 1707 बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात दिल्ली का मुग़ल सम्राट अपने अंत की ओर बढ़ रहा था और दक्षिण से मराठा साम्राज्य तीव्र गति से अपने विस्तार कार्य में जुड़ रहा था| छत्रपती साहू महाराज के कुशल सेनापति बाजीराव पेशवा के नेतृत्व में अनेकों मराठा सरदार भारत के विस्तृत क्षेत्र पर अपना परचम लहराने लगे थे उन्ही बहादुर मराठा सरदारों में से एक थे मल्हार राव होल्कर| पेशवा बाजीराव ने अपने विश्वसनीय सरदार मल्हार राव को 3 ऑक्टोबर 1730 में 74 परगनों का मालवा प्रांत जहागिरी के रूप में सौंप दिया, और मल्हार राव ने इंदौर को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया| एक दिन इंदौर से पुणे जाते हुए मल्हार राव अहमदनगर के चौंढी गाँव में विश्राम करने के लिए रुके, जहां संध्या के समय मंदिर में आरती के दौरान उनकी नजर 8 साल की एक तेजस्वी कन्या पर रुक जाती है, मल्हार राव अपने पुत्र खंडेराव के लिए एक उचित कन्या ढूंढ रहे थे, उसके प्रसन्न रूप और विनम्र वाणी से अतिप्रभावित होकर मल्हार राव ने उसे अपनी पुत्र वधु बनाने का निर्णय ले लिया| यही छोटी कन्या आगे जाकर भारतीय संस्कृति एवं सुशासन के नए मापदंड स्थापित करती है जो अपने असामान्य कार्यों से सामान्य जनमानस के हृदय में ईश्वर का दर्जा प्राप्त करती है|

अहिल्या बाई का जन्म 31 मई 1725 में चोंडी गाँव के पाटिल  मानकोजी शिंदे के घर में हुआ था| अहिल्या बचपन से बुद्धिमान कन्या थी,अपने सुसंस्कृत स्वभाव और मीठे बोल के कारण वो सबकी प्यारी दुलारी थी| महज 9 साल की उम्र में विवाह के बाद अहिल्या बाई एक दुल्हन के तौर पर मराठा समुदाय के होल्कर राजघराने में पहुंची तब ससुराल में भी अहिल्या ने अपने मधुर स्वभाव के प्रभाव से सबका मन मोह लिया| सन् 1745 में अहिल्याबाई के पुत्र हुआ और तीन वर्ष बाद एक कन्या हुई। पुत्र का नाम मालेराव और कन्या का नाम मुक्ताबाई रखा गया। उन्होंने बड़ी ही कुशलता से अपने पति के गौरव को जगाया। कुछ ही दिनों में अपने महान पिता के मार्गदर्शन में खण्डेराव एक अच्छे सिपाही बन गये। मल्हार राव अहिल्या बाई को भी राजकाज की शिक्षा देते रहते थे| सन 1754 में कुम्हेर के युद्ध के दौरान उनके पति खंडेराव होल्कर वीरगति को प्राप्त होगए| इस समय अहिल्या बाई लगभग 29 साल की थी| अपने पति की मृत्यु के पश्चात जब अहिल्या बाई ने सती होजाने का निर्णय लिया तो उनके ससुर मल्हार राव ने उन्हे रोकते हुए कहा “नहीं बेटी अब तू ही मेरा बेटा है, अगर तू भी चली जाएगी तो मुझे कौन संभालेगा” मल्हार राव की ऐसी अवस्था देख अहिल्या बाई ने सती होने का विचार त्याग दिया और पूरी कर्मठता के साथ होल्कर राज्य की बागड़ोर अपने हाथों में संभाल ली,सन 1765 में उन्होंने ग्वालियर के पास स्थित गोहाड़ किले पर कब्जा किया| सन 1766 में मल्हार राव भी चल बसे| ऐसी परिस्थिती में अहिल्या बाई ने अपने पुत्र मालेराव को राजगद्दी सौंपी, जिसके कुछ समय बाद ही मात्र 22 साल की आयु में उनका स्वर्गवास हो गया| अहिल्या बाई को इस घटना से अपार दुख पहुंचा, लेकिन प्रजा के प्रति अपने कर्तव्य का ध्यान कर उन्होंने अपने आँसू पोंछ लिए और राजकाज के प्रति समर्पित हो गई| इसी समय होल्कर राज्य के एक पुराने अधिकारी चंद्रचूड़ ने पेशवा के विश्वास पात्र राघोबा को पत्र लिखा कि होल्कर राज्य इस समय स्वामीहीन है तुरंत आईए बाद अच्छा मौका है|अहिल्या बाई को इस षड्यन्त्र की खबर होते ही उन्होंने घोषणा करवा दी की होल्कर राज्य की सम्पूर्ण सत्ता उन्होंने अपने हाथ में ले ली| राजमाता अहिल्या बाई ने अस्त्र,शस्त्र और राशन इक्हट्टा करना शुरू कर दिया|पड़ोसी राज्यों से भी सहायता का आश्वासन मिला| अहिल्या बाई ने एक नवीन प्रयोग भी किया उन्होंने स्त्रियों की एक पूरी सेना भी तैयार की और उन्हे अस्त्र, शस्त्र का पूरा प्रशिक्षण भी दिया|अहिल्या और उनकी सेना राघोबा का सामना करने के लिए निकल पड़े, तभी अहिल्या बाई ने अपने एक सेवक के हाथों राघोबा के लिए एक पैगाम भेजा जिसमे लिखा था की “अगर वो राघोबा से हार गई तो कोई ध्यान नही देगा,पर अगर राघोबा एक स्त्री से हार गए तो उनकी थू-थू होगी” यह पैगाम पढ़ कर कायर राघोबा ने अपना इरादा बदलकर युद्ध न करने का फैसला लिया और इस प्रकार अहिल्या ने अपनी समझदारी से यह जंग टाल दी|

अपनी कुशाग्र बुद्धि का प्रयोग करते हुए रानी अहिल्या बाई होल्कर ने मालवा के खजाने को फिर से भर दिया| इंदौर को एक छोटे-से गांव से समृद्ध और सजीव शहर बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया।उन्होंने अनेकों भव्य मंदिरों और तीर्थस्थलों का निर्माण करवाया।

सन 1766 में अहिल्या बाई अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर ले गईं| उस दौरान महेश्वर साहित्य, मूर्तिकला, संगीत और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था।अहिल्या बाई अपनी प्रजा की रानी थी, हर दिन वो उनसे बात करती और उनकी समस्याएं सुनती थी| उन्होंने सांस्कृतिक क्रत्यों,अनेक मंदिर, घाट, तालाब,धर्मशालाएँ,भोजनालय,कुएँ और दानव्रत खुलवाए थे|

काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका, बद्रीनारायण, रामेश्वर और जगन्नाथ पुरी के ख्यात मंदिरों में उन्होंने खूब काम करवाए।

अहिल्या बाई में एक खास विशेषता यह थी की वो बिना लड़ाई के ही जंग जीत जाती थी| उन्होंने यह काम एक बार नही कई बार किया,  परंतु जब 31 नगर देकर अहिल्या बाई ने चंद्रवत के राजा से शांति खरीद ली, और इतना कुछ लेने के बाद भी जब चंद्रवत राजपूतों ने लोगों को सताना बंद नही किया तब आखिरकार अहिल्या बाई को अपनी सेना के साथ रणभूमि में उतरकर उनका सामना करना पड़ा| छोटी सी सेना के साथ उन्होंने विरोधी को परास्त किया और बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ होल्कर सेना और अहिल्या बाई अपनी राजधानी वापस लौटे|

13 अगस्त सन 1795 में अचानक स्वास्थ्य बिगढ़ जाने के कारण महारानी अहिल्या बाई का अलंक्रत शासन समाप्त हुआ और 70 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ|

आज भी महारानी अहिल्या बाई होल्कर को लोग उनकी बुद्धिमता,उनके शौर्य,धैर्य और बलिदानी व्यक्तित्व की स्तुति में देवी के रूप में उनका पूजन करते हैं|

भारत समन्वय परिवार की ओर से ऐसे उज्ज्वल चरित्र वाली पतिव्रता नारी,न्यायपूर्ण शासक और उदार विचारों वाली महारानी अहिल्या बाई होल्कर को शत शत नमन|

हमारा प्रयास है की हम उनके कार्यों और आचरणों से प्रेरणा लेकर जीवन में अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए सदैव प्रयासरत रहें|

विपरीत और दुर्गम परिस्थितियों में भी साहस,आत्मविश्वास,और दराड़ निश्चय से परिसतिथियों को अपने अनुकूल कर लेने की उनकी क्षमता सदा ही एक आदर्श बनकर हुमार मार्गदर्शन करती रहेंगी|