सती एवं आदर्श माता मदालसा | Sati Madalasa | Bharat Mata

सती मदालसा परम विदुषी सती एवं आदर्श माता मदालसा गंधर्व राज विश्वसु की पुत्री का विवाह चक्रवर्ती महाराज सत्रजीत के पुत्र रितु ध्वज के साथ हुआ। सती मदालसा अपनी सेवा से सास-ससुर को सदैव संतुष्टि रख राजकुमार रितु ध्वज को भगवान सूर्य द्वारा प्रदत एक दिव्य अशुभ फल प्राप्त हुआ, जिसकी गति आकाश पाताल में सर्वत्र आवाज एक दिन राजकुमार रितु ध्वज पूर्व शत्रु पाताल केतु के भाई कालकेतु के यहां पहुंचा। वह काफी निवेश में रहता था। उसने राजकुमार यज्ञ के बहाने दलित की रत्नमाला मांगी और कहा कि वरुण देव की स्तुति कर शीघ्र आता हूं। रत्नमाला लेकर कालकेतु जल में घुसा और शस्त्र झटके। उसने राजा को कहा कि तुम्हारा पुत्र से युद्ध करते हुए मारा गया है। यह उसके गले की रत्नमाला है। मदालसा ने पति की मृत्यु का समाचार सुनकर प्राण त्याग दिए। कालकेतु उन्हें राजकुमार के सामने प्रकट हुआ और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अपने नगर प्रस्थान करने को कहा। राजकुमार ने नगर में आते ही मदालसा के प्राण त्याग की बात सुनी। प्रतिज्ञा की कि मदालसा के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री से विवाह या सुखों को भोग नहीं करेगा। ऐसी प्रतिज्ञा कर अपने मित्रों के साथ समय व्यतीत करने लगा। राजकुमार की 2 मिनट नागराज अस्पताल के पुत्र थे जो मनुष्य रूप में पृथ्वी पर विचरण कर राजकुमार रितेश बच के साथ मनोरंजन किया करते थे। एक दिन दोनों नाक पुत्रों ने राजकुमार की स्थिति अपने पिता से स्पष्ट की नाक राजस्व तने भाग।शंकर की विशिष्ट आराधना कर समय वह में मदालसा को पुत्री रूप में प्राप्त कर लिया और अपने पुत्रों द्वारा रितु ध्वज को बुलाकर मदालसा के उन्हें उत्पत्ति की कथा सुनाई और मदालसा राजकुमार को सौंप दी। उसी समय उसका अचूक उपाय भी वहां प्रकट हो गया। राजकुमार मदरसा को लेकर अपने नगर में आनंद पूर्वक आए। आधार में पिता के स्वर्गवास होने पर रितु ध्वज राजा हुए। रानी मदालसा को प्रथम पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम राजा ने विक्रांत रखा। नाम सुनकर मदालसा को हंसी आई। कालक्रम से दो पुत्र और उत्पन्न हुए जिनका नाम राजा ने सुबह और शत्रु मर्दन रखा। इन दोनों का नाम सुनकर भी रानी मदालसा को हंसी आई। रानी मदालसा ने तीनों को लोरियां गाने के बहाने विशुद्ध आत्मज्ञान दिया था।सिद्धू हंसी बुद्धोसी निरंजन ओसी संसार माया परिवर्तन तो संसार स्वप्नम मुंह नेतराम, मदालसा वाक्य मवेशी शुद्ध दूषित रितेश बिना हम जीते कल्पना अनुभव पंचायत मकान दे। हमें दमना तेज थी। निर्वाचित एवं विनोद जी यह तो लोरी गाती हुई मदरसा पुत्रों को कहती है। अरे सुन नित्य शुद्ध है। ज्ञान स्वरूप निर्विकार है। संसार की माया से निर्लिप्त है। संसार स्वप्न है। जन्म-मृत्यु के चक्र में डालने वाली इस मुद्रा को त्यागकर जागृत हो रहता तो शुद्ध आत्मा है। तेरा कोई नाम नहीं है। यह कल्पित नाम तो तुझे अभी मिला है। यह शरीर पंच भूतों से बना हुआ है ना यह तेरा है और ना तो इसका है इसलिए तो रो रहा है। इस प्रकार आत्म तत्व के ज्ञान उपदेश उसे रानी मदालसा ने पुत्रों को ममता 0 कर विरक्त बना दिया। कुछ समय उपरांत चौथा पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। राजा पुणे नामकरण के लिए चले मदालसा को हंसते देखकर राजा ने उससे ही नामकरण के लिए कहा। रानी मदालसा ने पुत्र का नाम अलग रखा। अर्थ का राजा ने जानना चाहा तो मदालसा ने कहा, नाम से आत्मा का कोई संबंध नहीं है। संसार का व्यवहार चलाने के लिए कोई भी ना कल्पना करके लिया जाता है। नाम संकेत आत्मक शब्द है। आपने तीन नाम रखे उनका भी आत्मा से कोई संबंध नहीं है। राजा निरुत्तर हो गए रानी पुनः चौथे पुत्र को लोरी में आत्म ज्ञान देने लगी। तब राजा ने कहा देवी इसे भी ज्ञान उपदेश कर मेरी वंश परंपरा का उन्मूलन करने पर क्यों तुली हो इसे प्रवृत्ति का उपदेश दो। रानी मदालसा ने पति का आज्ञा शिरोधार कर बचपन से ही व्यवहार शास्त्र, चारित्र, और राजनीति का शिक्षण देकर पूर्ण पंडित बना दिया। मदालसा के ये उपदेश मार्कन्डेय पुराण मे विस्तार से निहित हैं। 

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