क्या लेकर आया जग में, क्या लेकर जाएगा | स्वामी जी प्रवचन Part 3

भारत माता चैनल प्रस्तुत करता है स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज की वाणी से प्रस्फुटित "कुम्भ की स्मृतियाँ"। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज का जीवन, उनकी शिक्षाएं और उनके अद्वितीय दृष्टिकोण हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके अनुसार, कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक गहरी मानसिक, सामाजिक और धार्मिक क्रांति का प्रतीक है। स्वामी जी के शब्दों में कुम्भ का मेला "प्रयागराज क्रांति का पर्व" है, जो न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक जागरण का अवसर बनता है।

कुम्भ का मेला - एक मानसिक और आध्यात्मिक क्रांति

कुम्भ मेले का आयोजन हर बार कई दशकों में एक बार होता है और यह अनगिनत साधकों, भक्तों और तीर्थयात्रियों का संगम स्थल बनता है। स्वामी जी का मानना था कि कुम्भ का मेला एक ऐसी जगह है, जहाँ मनुष्य की मानसिकता और आत्मा का कायाकल्प होता है। यहां आने वाले लोग न केवल शारीरिक स्नान करते हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए भी स्नान करते हैं। यह एक दिव्य तंत्र है, जो हर व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का अवसर प्रदान करता है।

स्वामी सत्यमित्रानंद जी का आत्मज्ञान पर दृष्टिकोण

स्वामी जी ने इस क्रांति के क्षेत्र को केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप में भी देखा। उनका कहना था कि यह मेला साधकों के लिए एक महान अवसर होता है, जहाँ वे न केवल अपने मन, तन और आत्मा को शुद्ध करते हैं, बल्कि समाज के लिए भी एक नई दिशा तय करते हैं। स्वामी जी के अनुसार, जो लोग यश और सम्मान प्राप्त करते हैं, वे निश्चित रूप से सम्मानित होते हैं, लेकिन वे भी अधिक सम्मान के पात्र होते हैं, जो मूक भाव से, बिना किसी भौतिक महत्वाकांक्षा के, साधना में विलीन रहते हैं। उनका यह विचार समाज के उन व्यक्तियों के प्रति था, जो यश की खोज में नहीं, बल्कि अपने आत्मिक उत्थान में संलग्न रहते हैं।
स्वामी जी का विचार है की जिनका जीवन केवल आत्म-उद्धार के लिए समर्पित होता है, जो इस संसार के आकर्षणों से दूर रहते हुए साधना में लगे रहते हैं, वही वास्तव में महान होते हैं। उनके अनुसार, आत्मज्ञान और साधना से ही जीवन की सच्ची सफलता है।

 

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