गीता के माध्यम से अपने संकल्पों को कैसे शुद्ध करें | SHRIMAD BHAGWAT GEETA | Swami Satyamitranand Ji

प्रस्तुत विडिओ मे स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज कहते हैं की कभी-कभी व्यक्ति अपनी सात्विकता मे भी अहंकारी हो जाता है। एक उदाहरण देते हुए स्वामी जी बताते हैं की जिस त्याग का स्मरण समय-समय पर होता रहे, वो त्याग व्यर्थ है।

तुलसीदास जी की चौपाई के माध्यम से स्वामी जी कहते हैं,

नारि बिबस नर सकल गोसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं॥

सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना। मेल जनेऊ लेहिं कुदाना॥

अर्थात - हे गोसाईं! सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह नाचते हैं। ब्राह्मणों को शूद्र ज्ञानोपदेश करते हैं और गले में जनेऊ डालकर कुत्सित दान लेते हैं॥

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