Markandeya Purana | मार्कण्डेय पुराण की कथा और महत्व | मार्कण्डेय पुराण का रहस्य
संस्कृति किसी देश की आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति मे इसी अमित कोश को जानने और समझने की साधन का आधार है हमारा पुराण साहित्य। पुराण की ज्ञान श्रंखला मे आज हम बात करेंगे मार्कन्डेय पुराण की। मार्कन्डेय ऋषि द्वारा कथन के कारण इसका नाम मार्कन्डेय पुराण पड़ा। इसके 137 अध्यायों मे लगभग 9000 श्लोक हैं। 1 से 42वें अध्याय तक के वक्ता महर्षि जैमिन हैं, और उसको सुनने वाले धर्म पक्षी हैं। 43 से 90वें अध्याय के वक्ता ऋषि मार्कन्डेय हैं और उसको सुनने वाले कृपतुकी ऋषि हैं। इस पुराण मे दुर्गा चरित्र का वर्णन है, इसलिए इसे “शाक्त संप्रदाय” का पुराण कहा जाता है।
Markandeya Purana in Hindi
इस पुराण मे धनोपार्जन के उपायों का वर्णन ‘पद्मिनी विद्या’ द्वारा प्रस्तुत किया गया है। मार्कन्डेय पुराण मे सन्यास के बजाय गृहस्त जीवन मे निष्काम कर्म पर विशेष बल दिया गया है। ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने भीतर ओंकार (ॐ) की साधना पर विशेष ध्यान दिया गया है।
विस्तृत व्याख्या की दृष्टि से इस पुराण के पाँच भाग किये गए है-
प्रथम भाग – पहले भाग मे जैमिनी ऋषि को महाभारत के संबंध मे चार शंकाएं हैं, जिनका समाधान विंध्याचल पर्वत पर रहने वाले धर्म पक्षी करते हैं। महाभारत के समय पूछे गए चार प्रश्नों के उत्तर मे धर्म पक्षी बताते हैं की श्री कृष्ण के निर्गुण और सगुण रूप मे राग द्वेष से रहित वासुदेव का प्रतिरूप, तमोगुण से युक्त शेष का अंश, सतोगुण से युक्त प्रद्युम्न की छाया और रजोगुण से युक्त अनिरुद्ध की प्रगति विद्यमान है। वे अधर्मी और अन्याय का विनाश करने के लिए सगुण रूप मे अवतार लेते हैं।
द्रौपदी के पाँच पतियों से संबंधित दूसरे प्रश्न के उत्तर मे वे बताते हैं की पाँच पांडव पाँच रूपों मे इन्द्र के ही अवतार थे और द्रौपदी इन्द्र की पत्नी शची की अंशावतार थी। अतः उनका पाँच पतियों को स्वीकार करना पूर्णजन्म से जुड़ी कथा के कारण दोष रहित बताया गया।
तीसरा प्रश्न महाबली बलराम द्वारा तीर्थयात्रा मे ब्रह्महत्या के श्राप के संबंध मे था। धर्म पक्षी बताते हैं की मद्यपान करने वाला व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है। बलराम भी मद्यपान के नशे मे ब्रह्महत्या कर देते है और बाद मे पश्चाताप हुआ और ब्रह्महत्या का पाप लगा।
चौथा प्रश्न द्रौपदी के अविवाहित पुत्रों की हत्या की शंका के उत्तर मे धर्म पक्षी, राजा हरिश्चंद्र की कथा का वर्णन करते हैं। राजत्याग करके जाते राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी शैव्या पर विश्वामित्र का अत्याचार देखकर पांचों विश्वदेव विश्वामित्र को पापी कहते हैं। इस पर विश्वामित्र उनको श्राप दे देते हैं। उसी शाप के कारण वे पांचों विश्वदेव कुछ काल के लिए द्रौपदी के गर्भ से जन्म लेकर अश्वत्थामा द्वारा मारे जाते हैं, और पुनः देवत्व को प्राप्त करते हैं।
दूसरा भाग – दूसरे भाग मे जड़ सुमति के माध्यम से धर्म पक्षी सर्ग प्रतिसर्ग अर्थात सृष्टि की उत्पत्ति, प्राणियों के जन्म और उनके विकास का वर्णन है। इस प्रसंग मे भार्गव पुत्र सुमति के माध्यम से पुनर्जन्म के सिद्धांत का सुंदर चित्रण इस पुराण मे किया गया है। मदालसा की कथा नारी के उदान्त चरित्र को दर्शाती है। जिसमे माता की महिमा, अध्यात्म, वैराग्य, गृहस्त धर्म, कर्तव्य पालन आदि की शिक्षा प्राप्त होती है।
तीसरा भाग – तीसरे भाग मे ऋषि मार्कन्डेय अपने शिष्य क्रौष्ठिकि को पुराण के मूल प्रतिपाद्य विषय- सूर्योपासना और सूर्य द्वारा समस्त सृष्टि के जन्म की कथा बताते हैं। सृष्टि के विकास क्रम मे ब्रह्मा जी द्वारा पुरुष का सृजन और उसके आधे भाग से स्त्री के निर्माण का वर्णन है। सारी सृष्टि को सूर्य से ही उत्पन्न माना गया है और सूर्य पुत्र वैवस्तमनु से ही सृष्टि का आरंभ बताया गया है।
चौथा भाग – चौथे भाग मे देवी भागवत पुराण मे वर्णित ‘दुर्गा चरित्र’ और ‘दुर्गा सप्तशती’ की कथा का विस्तृत वर्णन है। दुर्गा चरित्र और दुर्गा सप्तशती की कथा के माध्यम से बताया है की जब-जब आसुरी प्रवत्तियाँ आती है तब-तब उनका संहार करने के लिए देवी शक्ति का जन्म होता है।
पाँचवा भाग – पाँचवे भाग मे वंशानुचरित के आधार पर कुछ विशेष राजवंशों का उल्लेख है। पुराणों की काल गणना मे मन्वन्तर को एक इकाई माना गया है। ब्रह्मा जी का एक दिन चौदह मन्वंतरों का होता है। इस गणना के अनुसार आज की गणना के हिसाब से ब्रह्मा जी का एक दिन “एक करोड़ उन्नीस लाख अट्ठाईस हज़ार दिव्य वर्षों का होता है।” एक चतुरयुग मे बारह हज़ार दिव्य वर्ष होते हैं। ब्रह्मा जी के एक दिन मे चौदह मनु होते हैं। पुराणों की यह काल गणना अद्भुत है। इस पुराण मे पृथ्वी का भोगोलिक वर्णन नौ खंडों मे हैं। ऋषियों द्वारा यह काल गणना, पृथ्वी का भोगोलिक वर्णन तथा ब्राहममंड की असीमता गूढ़ रूप से योग साधन है।
भारत समन्वय परिवार की ओर से मार्कन्डेय ऋषि को समर्पित मार्कन्डेय पुराण के जीवन मूल्यों को शत शत नमन। हमारा अथक प्रयास है कि इस बहुमूल्य पुराण के सार को जन जन तक पहुँचाए और इस यशस्वी परंपरा को.. सदा जीवंत रखने का संकल्प लें।