अक्षय तृतीया | अक्षय तृतीया का महत्व | Akshaya tritiya | Bharat Mata

हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व अत्यधिक विशेष है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जो विशेष फल प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। इस दिन का पुराणों में भी विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इसी दिन से ही सतयुग की शुरुआत हुई थी और भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म भी हुआ था। इसी वजह से अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है।

अक्षय तृतीया महत्व: अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है

हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया मनाई जाती है, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन शुभ कार्य किए जा सकते हैं और अक्षय तृतीया को सर्व सिद्ध मुहूर्त के रूप में भी महत्व दिया गया है। इस दिन बिना पंचांग देखे भी कोई शुभ कार्य किया जा सकता है, जैसे गृह प्रवेश, आभूषणों की खरीदारी, या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी। पुराणों में लिखा गया है कि पिंडदान बेहद फलदायक होता है। इस दिन गंगा स्नान करने और भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन मां अन्नपूर्णा का जन्म हुआ था, इसलिए लोग मां की पूजा कर उनसे अपने भंडार भरपूर रखने का आशीर्वाद मांगते हैं और गरीबों को भोजन भी कराते हैं। दक्षिण भारत में मान्यता है कि भगवान शिव ने धन के देवता कुबेर को मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था, इसलिए इस दिन लक्ष्मी यंत्र की पूजा की जाती है जिसमें लक्ष्मी और विष्णु के साथ कुबेर का भी चित्र होता है। वहीं बंगाल में 30 दिनों तक भगवान गणेश और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। अक्षय तृतीया का व्रत महिलाएं अपने और परिवार की समृद्धि के लिए करती हैं। इस पावन मुहूर्त में गंगा स्नान करके भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा पर श्रद्धापूर्वक चढ़ाना चाहिए। शांत मन से श्वेत कमल के पुष्प, यश, वैद्य, गुलाब, धूप, अगरबत्ती और चंदन से उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

अक्षय तृतीया : पौराणिक व्रत कथा

अक्षय तृतीया को लेकर भगवान श्री कृष्ण और सुदामा से एक प्रसिद्ध कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार, श्री कृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा इसी दिन श्री कृष्ण के द्वार उनसे अपने परिवार के लिए आर्थिक सहायता मांगने गए थे। भेंट के रूप में सुदामा के पास केवल एक मुट्ठी भर पोहा ही था। श्री कृष्ण से मिलने के बाद अपनी भेंट उन्हें देने में सुदामा को संकोच हो रहा था, लेकिन भगवान कृष्ण ने मुट्ठी भर पोहा सुदामा के हाथ से लिया और बड़े चाव से खाया। श्री कृष्ण ने सुदामा का भव्य स्वागत किया और उन्हें बड़े सम्मान के साथ सम्मानित किया। सुदामा को यह समझते देर न लगी कि यह सब उनके मित्र और विष्णु अवतार भगवान कृष्ण का आशीर्वाद था। जब सुदामा अपने घर लौटे, तो उन्होंने देखा कि उनके टूटे-फूटे घर के स्थान पर एक भव्य महल था और उनकी पत्नी और बच्चे नए वस्त्र और आभूषण पहने हुए थे। यह देखकर सुदामा को समझ आ गया कि यह भगवान कृष्ण का आशीर्वाद था। यही कारण है कि अक्षय तृतीया को धन-संपत्ति के लाभ प्राप्ति से भी जोड़ा जाता है।

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