Padma Puran: जानिए पद्म पुराण एवं इनके पांच खंडो के बारे में | Ved & Puran | Bharat Mata

पुराणों के विषय आध्यात्मिक विचार, नैतिकता, भूगोल, खगोल, सांस्कृतिक सामाजिक परम्पराएं, तीर्थ यात्रा, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं। पुराणों में वर्णित विषयों की वास्तव में कोई सीमा नहीं है। वेदों की भाषा शैली तुलनात्मक रूप से जटिल है, पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। पुराणों में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। वेद में निहित ज्ञान के अत्यंत गूढ़ होने के कारण साधारण मनुष्य के लिए उन्हें समझना कठिन था, इसलिए रोचक कथाओं के माध्यम से वेद की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्ही कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता है। 

पद्म का अर्थ - what is padma purana | पद्म पुराण अन्य पुराणों से किस प्रकार भिन्न है?

पुराण साहित्य में पद्म पुराण का अपने परिमाण के कारण एक विशिष्ट स्थान है। 50000 श्लोकों वाला यह पुराण स्कंद पुराण को छोड़कर अन्य सभी 16 पुराणों से विस्तृत व विशाल है। मुख्यत: इसमें तीर्थों, व्रतों व विष्णु भगवान से संबंधित बहुत ही रुचिकर, श्रृद्धा व भक्ति से परिपूर्ण आख्यान है, जिसकी विषय वस्तु दूसरे पुराणों से भिन्न है। पद्म पुराण में कई प्रसिद्ध आख्यान व उपाख्यान प्राप्त होते हैं तथा बलि- वामन का आख्यान, शकुंतला का उपाख्यान, नन्दा धेनु का उपाख्यान, गायत्री और सावित्री के उपाख्यान प्रसिद्ध हैं।

इस पुराण के पांच खंड निर्धारित हैं।

1) सृष्टि खंड 
2) भूमि खंड
3) स्वर्ग खंड
4) पाताल खंड
5) उत्तर खंड

सृष्टि खंड- इस खंड में 82 अध्याय हैं और यह पुन: पांच उपखंडों में विभाजित है।

1) पौष्कर पर्व
2) तीर्थ पर्व
3) तृतीय पर्व
4) वंशानुकीर्तन
5) मोक्ष पर्व

पद्म पुराण: खंडों व अध्यायों का वर्णन

इसमें देवगण, मुनि, पितर तथा मनुष्यों की सात प्रकार की सृष्टि की सृजन गाथा का विवरण है। इसके अतिरिक्त पर्वतों, द्वीपों व सप्त सागरों का वर्णन प्राप्त होता है। 24वें अध्याय में आदित्य शयन और रोहिणी-चंद्र शयन व्रत का वर्णन किया गया है, जो अत्यंत पुण्यशाली, मंगलकारी अमंगलहारी व सुख सौभाग्य प्रदायक है। 36वें अध्याय में भगवान नारायण की महिमा व प्रलय काल में वट पत्र पर मार्कण्डेय ऋषि द्वारा भगवान के अद्भुत दर्शन का वर्णन है। 38 से 40वें अध्याय में भगवान शिव का चरित्र वर्णित है तथा तारकासुर के जन्म से कार्तिकेय द्वारा तारकासुर के वध की कथा प्राप्त होती है। 49वें अध्याय में माण्डव्य ऋषि और उनकी धर्मनिष्ठ व पतिव्रता पत्नी शैव्या की पतिभक्ति का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत है, 58वें अध्याय में रूद्राक्ष की उत्पत्ति और महिमा का वर्णन है। 60वें अध्याय में त्रिपथगामिनी गंगा जी की महिमा और उनकी उत्पत्ति गाथा का पवित्र वर्णन है। अंत में संक्रांति के शुभ फल व भगवान सूर्य की उपासना के साथ सृष्टि खंड का समापन होता है।

भूमि खंड

मुख्यतः वैष्णव पुराण होने के कारण इस ग्रंथ का हरिवैष्णव भक्ति व विष्णु महिमा से है। इसका प्रमुख उद्देश्य भी वैष्णव शिव के समभाव को प्रतिपादित करना ही है। इसी भावना के अनुकूल भूमि खंड के प्रारंभ में शिव शर्मा ब्राम्हण के माध्यम से पितृ भक्ति व वैष्णव भक्ति की सुंदर गाथा का प्रस्तुतिकरण है तथा वसिष्ठ ऋषि द्वारा सोम शर्मा नामक ब्राम्हण को पूर्व जन्म संबंधी शुभाशुभ कार्यों का वर्णन तथा भगवत् भजन का उपदेश दिया गया है। इस उपदेश के फलस्वरूप सोम शर्मा द्वारा भगवान विष्णु की आराधना और भगवान द्वारा उन्हें दर्शन देना और सोम शर्मा द्वारा विष्णु भगवान की भावपूर्ण स्तुति का प्रसंग है। अगले क्रम में वेन के पुत्र राजा पृथु के जन्म व चरित्र का वर्णन मिलता है इसके पश्चात सती सुकला की कथा तथा शूकर और शूकरी का उपाख्यान, शूकरी द्वारा अपने पूर्व जन्म का वृतांत कहना तथा रानी सुदेवा के पुण्य से उसके उद्धार की कथा का प्रसंग है। 

स्वर्ग खंड

62 अध्यायों में इस खंड में पुष्कर तीर्थ व नर्मदा जी के तटतीर्थों का बड़ा ही पुण्यप्रदायक वर्णन है, इस खंड में प्रसिद्ध शकुंतलों उपाख्यान है जिसकी विषय वस्तु महाभारत से थोड़ी भिन्न है, परंतु कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम पर इसकी स्पष्ट छाप दिखाई देती है। तीर्थ वर्णन का आध्यात्मिक कारण यह है कि सिद्ध पुरुष जिस स्थान पर बैठकर योग साधना करते हैं वह स्थान सिद्ध भूमि बन जाता है तथा इन स्थानों में विशिष्ट प्रभावी तेज विद्यमान हो जाता है जो वहाँ यात्रा करने वालों को अवस्था लाभ कराता है।

पाताल खंड

इस खंड में भगवान विष्णु के रामावतार व कृष्णावतार की लीलाओं का वर्णन है, खंड के प्रारंभ में शेषनाग श्रीराम के लंका से अयोध्या वापस आने के प्रसंग में कथा का प्रारंभ करते हैं और भरत मिलाप का अत्यंत भावुक चित्रण प्रस्तुत होता है। इसके पश्चात रामराज्य का वर्णन है जिसमें आदर्श राज्य व्यवस्था के लक्षणों का वर्णन है। इसके बाद अश्वमेघ यज्ञ का प्रसंग आरंभ होता है। इसी क्रम में हनुमान जी के चरण प्रहार से सुबाहु ' के श्रापोद्धार की कथा है। इस कथा के अगले चरण में सीताजी का अपवाद करने वाले धोबी के पूर्व जन्म का भी वृत्तान्त है। जब वह शुक था, तब सीताजी अपने पितृगृह में उसे पिंजड़े में बंद कर दिया था ।
इस खंड के अगले भाग में वृंदावन और श्रीकृष्ण का महात्म्य वर्णन प्रारंभ होता है। श्रीकृष्ण महात्म्य के इन अध्यायों में श्रीराधा की अष्ट प्रधान सखियों का वर्णन है तथा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बृज व द्वारका में निवास करने वालों के लिए सहज मुक्ति का वरदान व वैष्णवों के लिए पांच प्रकार की पूजा व ह्रदय शुद्धि का वर्णन है।

उत्तर खंड

उत्तर खंड का प्रारंभ नारद महादेव के मध्य बद्रिकाश्रम व नारायण महिमा के साथ प्रारंभ होता है। जिसके पश्चात गंगावतरण की संक्षिप्त कथा व हरिद्वार का महात्म्य है। इसके अतिरिक्त गंगाजी, यमुनाजी एवं प्रयाग काशी व गया आदि तीर्थों की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही तुलसी व्रत की विधि व महिमा का वर्णन है। गीता के सभी 18 अध्यायों में अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए प्रभु कहते हैं कि गीता के पांच अध्याय मेरे पांच मुख हैं। 10 अध्याय मेरी 10 भुजाएं हैं। 1 अध्याय उदर है और एक 2 अध्याय चरणकमल हैं। इस प्रकार यह 18 अध्यायों का पवित्र ग्रंथ मेरी ही प्रतिमूर्ति है। अंत में श्रीमद्भगवत के सप्ताहपारायण विधि व श्रीरामचंद्र की कथा और उनके पवित्र 108 नामों के साथ ये पवित्र पुराण विश्राम करता है।

भारत समन्वय परिवार की ओर से हमारा प्रयास है की पुराणों मे निहित ज्ञान को जन जन तक प्रेषित करें और अपनी इस सांस्कृतिक धरोहर के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को प्रेरित और लाभान्वित करें। 

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